Sunday, December 25, 2011

  हम शाकाहारी है या मांसाहारी ?                                                               दोस्तों नमस्कार ,वाकई ये एक बड़ा अजीव सा सबालहै कि हम लोग हें क्या ?शाकाहारी या मांसाहारी |जो शाग सब्जी हम और आप खाते है वैज्ञानिक उस पर भी शंका पैदा कर देते हें |आपको जानकर आश्चर्य  होगा कि टमाटर और आलू जैसे वनस्पति पौधे भी मांसाहारी होते है जो स्व -निषेचन के लिए कीटों की हत्या करते है |क्यू एंड क्वीन मैरी ,लन्दन विश्वविध्यालय के रायल बोटनिकल गार्डन्स के वैज्ञानिकों ने पाया कि ये पौधे अपने तनों पर पाए जाने वाले चिप चिपे बालों से छोटे छोटे कीटों को पकड कर मार डालते है |बोटानिकल जर्नल आफ द लिनिय्ल सोसायटी में प्रकाशित अध्ययन मे कहा गया हैं कि इस के बाद वे अपनी जड़ों की मदद से इन कीटों के शरीर में  पाए जाने वाले पोषक तत्वों को चूस लेते हैं और फिर वे इन कीटों को छोड़ देते हैं |
क्यू एंड क्वीन मैरी के प्रोफेसर मार्क चेज ने कहा कि उगाये हुए टमाटर और आलू के पौधे पर रोम पाए जाते है |खासतौर पर टमाटरों पर यह चिपचिपे होते हैं जिससे ये नियमित तौर पर कीटों को पकड़ते रहते हैं और अपना आहार  ग्रहण करते हैं | पहले ऐसा मानाजाता था कि जंगली पौधों ने यह  तकनीक जमीन की गुणवत्ता में कमी के कारण अपने पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए   विकसित की होगी लेकिन बागानों में उगाई गयी  किस्मों  में भी यह गुण बनारहता हैं |
     वीनस फ्लाई ट्रैप मांसाहारी पौधे के रूप में खासा  पहचाना जाता है | माना जाता है कि मांसाहारी पौधों   की संख्या लगभग ५० तक हो सकती  है | चेज ने कहा कि हमारी सोच से ज्यादा  मांसाहारी पौधे हमारे   आसपास  पाए जाते है पर हम उनको अचल  और नुकसान रहित मानने के आदी हो गये है |
                                       दोस्तों  मांसाहारी पौधों कि बात पर हम अपने आपको असहज  महसूस कर करते है और जब बात आलू,टमाटर जैसी सब्जियों की हो तो यह विषय एक चर्चा का कारण बन जाता है |
 पर किसी भी शोध को यूँ ही नही नकारा जा सकता |----------                

                                                      


Wednesday, October 26, 2011

उड़ने वाली कार :-
===========    दोस्तों दीपावली ,गोधन , भाई-दूज की शुभ-शुभ कामनाएं | दोस्तों महानगरों में बड़ती आबादी से ट्रेफिक रेंगता नजर आता है | मन करता है ऐसी फिलाईंग कार हो जो सड़क से ही हवाईजहाज की तरहा उड़ने लगे |फ़िक्र न करिये शायद इस शदी में ऐसी कार होगी जो सच मुच हवा से बात करेगी |ऐसी कार जो हवा में उड़ सकेगी ,सडकों पर दोड़ेगी|
                   अमेरिकी कम्पनी "टेरफुगिया ट्रांजिशन " के इंजीनियरों ने इस कार को "फ़्लाइंग  कार "नाम दिया है | कार की क्षमता दो यात्रियों की है | सड़क पर दौड़ रही फ़्लाइंग कार सिर्फ ३० सैकिंड में हवा में उड़ने के लिए तैयार होगी |जिसकी टैक ऑफ़ स्पीड :३५ मील प्रति घंटा हैं |जब जरूरत होगी तो कम ऊंचाई पर उड़ने के साथ यह तीव्रता से दुवारा सड़क पर आ जाएगी |इस कार ने मार्च २००९ में अपनी पहली उडान भरी थी |कम्पनी के उपाध्यक्ष रिचर्ड गर्श ने कहा कि कार आटोमोबाइल का विकल्प नही बल्कि ट्रेफिक मई आने वाली दिक्कतों को दूर करने कि जादुई चाभी हैं |
                    डाइत्रिच  ने कहा कि मैजिक कार में वाहन चालकों को किसी भी जमीन या आसमान में जाने कि सुभिधा होगी |मौसम ख़राब होने यह कार अपने पंख मोड़ लेगी और आम गैराज में भी खड़ी हो सकती हैं |
                       दोस्तों तैयार रहिये ऐसी कार के स्वागत के लिए |अब मैं बताता हूँ फ़्लाइंग कार के इतिहास के बारे में :- # ऐसी पहली कार "वाल्डो वाटर मैन" ने बनाई|
              #  पहली कार जैव इधन चालित थी, रफ्तार ७८ मील /घंटा |
              #२० फिट ६ इंच लम्बी कार ने २१ मार्च १९३७ को उडान भरी |
              #१९२६ में हेनरी फोर्ड ने स्काई फीवर नाम का वाहन बनाया |
              #एयरो कार :१९४९" ने २००६ तक उडान भरी |
               # एयारा ऑटो पि एल ५ सी : १९५० के शुरुआत में बनी |
               #ए वि ई मिजार :७३ सेसना स्काई मास्टर -फोर्ड का सयुक्त उपक्रम हैं |   



Sunday, May 29, 2011

बेटे या बेटियां :-
==========     लड़कियों ने फिर बाजी मारी |जो अक्सर इन दिनों सुना जाता है , बारहवी के रिजल्ट आ गए, उससे पहले दसवीं की आए और हर अखवार की यही हेड लाइनथी कि लडकियों ने फिर बाजी मार ली | तमाम बन्धनों के बावजूद लडकियाँ कैसे मारजाती हैं बाजी |
       इस बात को नकारा नही जा सकता हैं कि बेटियों (लडकियों ) मेंजहाँ मन को बांधे  रखने कि  क्षमता  होती है वहीं दूसरी ओर वे पढ़ाकू भी होती हैं | उन्हें बेटों कि तरह न तो बाहर जाने की छूट होती हैं न ही देर तक घर से बाहर रहने की इजाजत मिलती है | माता - पिता का कंट्रोल बेटों की अपेक्षा बेटियों पर  ज्यादा  होता है |माता -पिता चाहे कितने शिक्षित या उच्च पद पर क्यों न हो ,बेटी को घर का काम सिखाने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहयते | इस लिए बहुत सारी चीजों को एक साथ करने की आदत उसे मेहनती बना देती हैं |
          बेटियों के साथ तो यह भेद भाव तो सदियों से चला आरहा है | बेटियां चाहे अपने परिवार का कितना ही नाम रोशन करलें कैसी ही परिस्तिथियों में ,पर पूजा जाता है तो बस इन कुल दीपकों को | इस विषय पर आज एक कविता मुझे बार - बार याद आ रही है जिसे मैं आप के लिए लाया हूँ
:-
         बोये जाते हैं बेटे , और उग आती हैं बेटियां |
                            खाद पानी बेटों में , और लहलहाती हैं बेटियां |
         एवरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
                                                और चढ़ जाती  हैं बेटियां ||
             
         रुलाते हैं बेटे और रोती हैं बेटियां |
         कई तरह गिरते हैं और गिराते हैं बेटे ,
         और सम्भाल लेती हैं ,बेटियां ||
                   
          सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे ,
          जीवन का यथार्थ होती हैं बेटियां ||
          जीवन तो बेटों का हैं ,
          और मारी जाती हैं बेटियां ||

     दोस्तों सोचो ,समझो , ....... ये कविता आप को कैसी लगी ..... क्या ये सच नही ?  
      आपके सुविचारों की प्रतीक्षा मै...........     ...... आप का ये दोस्त |        

Sunday, May 15, 2011

MOUT KI GHATI

मौत की घाटी :-
----------------------------------------  आप भी ये सोच रहे होगे की में किस विषय के बारे मैं ये जानकारी साझा करना चाहयता हूँ |दोस्तों ये सच है , दुनिया में एक जगह एसी भी है  जहाँ  रेगिस्तान में पत्थर इस तरह घूमते है मनो सजीव हो | इन पत्थरों  में कई तो  ११५ किलो ग्राम  तक भारीहैं | बिना किसी मदद के  ये पत्थर आश्चर्यजनक  रूप से इस घाटी की सतह पर  एकदम  सीधी पंक्ति में चलते हैं | 
          ये घाटी जिसे लोग "डेथ वैली " के नाम से भी जानते हैं , अमेरिका  का सबसे निचला बिंदु हैं | यह समुन्द्र तल  से २८२ फिट निचे हैं | यह घाटी लगभग समतल है और अबतक दर्ज सबसे अधिक तापमान ,५८ डिग्री सेल्सियस वाली दूसरी जगह है | 
  वैज्ञानिकों का माननाहै कि इन पत्थरों कि इस अद्भुत गतिविधि का कारण मौसम कि खास  स्तिथि हो सकती है |इस बारे मे किए गए शोध बताते है कि रेगिस्तान में ९० मील प्रति घंटे की   गति से चलने वाली हवाएं ,रात को जमने वाली बर्फ तथा सतह के उपर गीली मिटटी की पतली  परत ,ये सब मिलकर पत्थरों को गतिमान करते होंगें |
          कुछ पर्यावरण विदों का मानना है कि जैसे-जैसे ताप मान में व्रद्धी होगी ,वैसे-वैसे पत्थरों का   खिसकना बंद हो जाएगा | इस बारे में एक सिद्धांत यह बताया जाता हैं कि रेत की सतह के निचे   उठते पानी और सतह के ऊपरबहती तेज हवाओं के मेल के कारण पत्थर खिसकते है |
                   फोटो ग्राफर  माइक बायरन ने पत्थरों की हलचल को फिल्माने में कई साल बिताये हैं | "डेली टेलीग्राफ " को दिए साक्षात्कार में बायरन ने बताया -रेगिस्तान में अपने आप चलने वाले कुछ पत्थर आदमी के वजन जितने भारी हैं | इतने भारी पत्थरों का बिना बाहरी कारण के आगे  सरकना बहुत ही आश्चर्य जनक और अविश्वसनीय है | उनके मुताबिक ये पहेली आज तक अनसुलझी ही है |
               १९८० हैम्पशायर ,मैसाचुसेट्स कालेज के प्रोफेसर ज़ोनरीड ने इन सरकते पत्थरों को लेकर एक अध्ययन किया |उनका निष्कर्ष था कि सम्भवतय रात को जमने वाली बर्फ और हवा मैं अद्भुत मेल से पत्थर सरकते होंगे |लेकिन इसे संतोषजनक उत्तर नही मन जाता |      

Wednesday, April 27, 2011

ALIENS

कहीं जमीं पर न आ जाये ........
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दो तीन दिन पहले एक क्लिप एक न्यूज़ चेनल पर बहुत दिखाई जा रही थी |यू ट्यूब पर भी कितने लोगो  द्वारा देखी गयी |यह थी.. साईबेरिया की वर्फ में दबे हुए एलियंस  के मृत शरीर की |
एलियंस कैसे होते है ,कहां रहते  हैं और उनकी भाषा क्या है ?यह सवाल हम सबके लिए फ़िलहाल पहेली  बने हुए हैं |जादू जैसे एलियंस महज किस्से कहानियों का हिस्सा नहीं है हकीकत में भी पृथ्वी से कोसों दूर उन  जैसे कुछ जीवों ने अपनी दुनिया बसा रखी  हैं विश्व के शीर्ष भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग खुद इन जीवों के अस्तित्व की तस्दीक करते हैं |डिस्कवरी चेनल पर उन्होंने कहा कि वेशक एलियंस दुसरे ग्रहों पर  साँस ले रहे है लेकिन इन्सान को उनसे दूरी बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि  दोनों के बीच  तकरार का नतीजा खतरनाक हो सकता है | उन्होंने चेताया कि एलियंस संसाधनों की   तलाश में  कभी भी पृथ्वी पर धावा बोल सकते है |लिहाजा वैज्ञानिक  ऐसे कोई   भी सुराग न छोड़े , जिसके निशान खगालते हुए वे हम तक पहुंच  जाये स्टीफन की माने तो हमे एलियंस से सम्पर्क साधने की वजाय उन्हें नजरंदाज करना चाहिए |
सर्च फॉर एक्स्ट्रा तेरेस्तियल इंटेलिजेंस के संस्थापक वैज्ञानिक फ्रेंक ड्रेक ने एलियंस की जासूसी करने का सुझाव पेश किया |उन्होंने कहा  इस काम के लिए सुदूर ग्रहों पर अन्तरिक्ष यान भेजे जाये| इस यान की मदद  से इन ग्रहों पर रहने वाले एलियंस के वार्तालाप या संदेश सुने जाये | फ्रेंक  की यह प्रस्ताव रिपोर्ट न्यू  साइंटिस्ट मैग्जीन में छपी है |
     परन्तु हॉकिंग ने धरती से अन्तरिक्ष में रेडिओ सिग्नल छोड़ने के प्रति आगाह किया है इसके अलावा दुसरे ग्रहों पर यान भेजने से मना किया है जिनपर पृथ्वी का रास्ता सुझाने वाले  नक्शे मौजूद हों | हॉकिंग  ने कहा मेरी गणित  की समझ मुझे एलियंस की मौजूदगी को सिरे से ख़ारिज करने से रोकती है |इन्सान की भलाई इसी मे है की वे उनसे दूर रहें |

Wednesday, April 20, 2011

ABHI TO MAIN JAWAN HOON........

अभी तो मैं जवान हूँ :-
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वह दिन दूर नही जब यह गाना आपके लिए हकीकत बन जायेगा किअभी तो मैं जवान हूँ ........| वैज्ञानिकों ने अमृत का एक फॉर्मूला तैयार किया है |इसे ग्रहण करने के बाद इंसान न केवल शारीरिक रूप से वृद्ध होगा न मानसिक रूप से |उसकी सभी इन्द्रियां युवा कि तरह काम करती रहेंगी
इस पर जापान के साथ भारत में काम चल रहा है |वैज्ञानिकों ने इस फॉर्मूले पर काफी हद तक सफलता हासिल कर ली है |
काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के अमीरिट्स चिकित्सा विज्ञानी प्रो. रामहर्ष सिंह ने अश्वगंधा के सटीक मात्र में प्रयोग से रसायन  तंत्र के तहत औषधि का फॉर्मूला तैयार किया है |ब्रिटन के चिकित्सकीय  जनरल " BIOJERONOTOLOJI  " में उनका शोध प्रबंध प्रकाशित हो चुका है | उनकी सोच है कि दुनिया में बुजुर्गों की आबादी बढ रही है ऐसे मे जरुरी हो गया है की उनकी मेधा और कार्यशक्ति को लम्बी  अवधि तक जवान रखा जाये |प्रो. सिंह ने बुढ़ापा के १४  प्रमुख लक्षणों स्मृति का कम होना , नींद की कमी ,त्वचा मे झुर्रियां ,आंख की रौशनी क्षीण होना   ,बालों की सफेदी ,श्रवन शक्ति में कमी ,अवसाद  या डिप्रेशन ,चित्तोद्वेग या एनजायती, मूत्र सम्बन्धी विकार ,हड्डियों में दर्द , संज्ञान क्षमता का कम होना  तथा इन्द्रिय सम्बन्धी विकार को ज्यादा समय तक टालने पर काम किया है |उन्होंने अश्वगंधा के प्रयोग के उचित मात्रा में प्रयोग द्वारा मानव शरीर के आणविक पोषण की प्रक्रिया को सही करने पर काम के तहत वाराणसी के ३५ से ४०  वर्ष उम्र के सौं  लोगों पर परिक्षण किया | हर छह माह पर दो बार दवा के प्रयोग का निष्कर्ष जांचा गया तो पता चला की दवा के प्रयोग से जहाँ याददास्त  बड़ी, वहीँ बुढ़ापे में होने वाले बायोलोजिकल  क्षरण और मानसिक सेहत का क्षरण भी कम हुआ यानि  बुढ़ापे  के लक्षणों  के पनपने की गति मंद पाई गयी |
अमेरिका में जीन के आधार  पर   म्रत्यु टालने पर कुछ वैज्ञानिक काम कर रहे है |ब्रिटिश जनरल ऑफ़ फर्मोकोलोजी मे प्रकाशित डॉ. क्बोयामा  के नेतृत्व वाले जापानी वैज्ञानिकों के शोध प्रबंध में दिमागी कोशिकाओं को अश्वगंधा के प्रभाव से पुनर्जीवित करने पर फ़ोकस है |लेकिन अश्वगंधा के प्रयोग से बुढ़ापा टालने का प्रो. सिंह का शोध ज्यादा सटीक है |  

Sunday, March 27, 2011

JAPAN

भूकंप,सुनामी , परमाणु रिसाव और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी महात्रास्दियों का सामना कर रहे   जापान की चर्चा  हर तरफ है पर आज मैं आप को एक समुद्री महाकाल के बारे में बता रहा हूँ जो प्रशांत महासागर में जापान के निकट है |एक एसा इलाका जहाँ बड़े -बड़े जहाज पल भर मै गुम हो जाते है ,पानी को छोडिये इस इलाके मै हवा मै भी मौत तैर रही है ,सिर्फ जहाज ही नही हवाई जहाज भी इस इलाके को पार पार नही कर पाते | ये इलाका है प्रशांत महासागर मै जापान के मियाकी द्वीप के पास" ड्रेगन ट्रायंगल " एसा रहस्यमय त्रिकोण ,जिससे कोई बापस नही आया |जो लोग इस के करीब गये उन्होंने अजीब सी घटनाए महसूस की इस इलाके के पास जाते ही उनके  जहाज का  नेविगेशन  सिस्टम काम करना बंद करदेता है | दिशाओं का कुछ पता नहीं चलता ,कई बार उन्हें बिजली जैसी रौशनी  दिखाई  दी ,मौसम में बड़े बदलाव देखे समुद्री तूफान व् उफनते चक्र्बात देखे | छोटे -२ पोत से लेकर  दो लाख टन तक के जहाज इस त्रिभुज मै समागये |इतिहासकारों की माने तो १३वि सदी में मंगोलिया के   राजा कुव्लाई खान ने दो बार जापान पर इस रस्ते से हमला करने की कोशिश की विफल रहा , उसकेचालीस हजार सैनिक इस त्रिभुज की भैट चढ़ गए ,उस वक्त जापान ने इसे कुदरत कीमेहरवानी माना 
सैकड़ों साल बाद भी सैनिकों के गायब होने का रहस्य उसी तरह बरकरार है | १९५२ से ५४ के बीच जापान 
के पांच सैन्य जहाज इस त्रिभुज मैं गायब हो गये थे | इनमे सात सौ से भी ज्यादा सैनिको की जान गयी |इसके बाद 
जापान ने इस इलाके को खतरनाक घोषित कर दिया |
              आखिर क्यों ,गम हो जाते है बड़े बड़े जहाज ?क्या है इस त्रिकोण का रहस्य ?इसका फैलाब कितना है ?ये प्रथ्वी पर जिस जगह बनता है उसमे भी एक हैरान करने बलि बात है| प्रथ्वी के केंद्र से अगर कोई रेखा खिची जाये तो एक तरफ ड्रेगन ट्रएंगल होगा तो दूसरी तरफ वारमुडा ट्राएंगल यानि दो एक जैसे इलाके एक दुसरे के ठीक विपरीत दिशा मैं |वैज्ञानिक इस में भी कुछ सम्बन्ध मानते है |उनेंह शक है कि यहाँ प्रथ्वी के ग्रुत्वाकर्शन का चक्कर हो सकता है | कुछ मानते है कि इस के निचे मिथाइल हाइड्रेड काफी मात्रा में मौजूद है जब यहाँ का तापमान १८ सेल्सियश से ऊपर चला जाता है तो एकाएक गैस में बदल जाता है जिस से समुद्र में हलचल होती है उसीके कारण ये दुर्घटनाएं होती हैं|
                अमरीकी खोजकर्ता चार्ल्स वर्लिथ ने अपनी किताब "ड्रेगन ट्राएंगल "में इन बातों का जिक्र किया है एक और वैज्ञानिक लैरी कुशे ने भी इस इलाके पर खोज कि उन्होंने दावा किया कि यहाँ अक्सर भूकम्प आते है ,ज्वालामुखी फटते है जिसमें जहाज फंस जाते है,पर जहाजों का मलवा कहाँ जाता है ,इसका कोई जवाब नही दे पाते |कुछ लोग इसे दूसरी दुनिया का दरवाजा मानते है ,कुछ इसे एलियंस का इलाका | वैज्ञानिक थ्योरी हो या मान्यताएं अब तक सिर्फ कयास लगाये जा रहे है कोई ठोस प्रमाण नही | 
                                                   || वन्दे -मातरम | |  

Sunday, February 27, 2011

कैंसर की पीड़ा :-
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कैंसर एक असाध्य रोग है यह बात हम सभी जानते है ,परन्तु इस रोग के साथ एक असहनीय दर्द भी साथ बना रहता है जिसका उपचार फोरी तोर पर ही उपलब्ध है जब तक दर्द निवारक दवाओं का असर रहता है ,दर्द से थोड़ी  राहत मिल जाती है , असर खत्म होते ही फिर वही पीड़ा ,परन्तु अब हमारे आयुर्वेदिक डाक्टरों ने एक आशा की  दिखाई है |
                 रोग में  होने वाली पीड़ा को खत्म करने की दवा  बी एच यू के तीन डाक्टरों की टीम ने सौ मरीजों पर परीक्षण कर खोज निकला |परीक्षण करने के बाद पाया किआयुर्वेदिक ओषधियाँ कैंसर पीड़ित मरीजों कि रोग - प्रतिरोधक क्षमता तो बढाती ही है ,साथ ही दर्द से भी छुटकारा दिलाती है |
             तीन साल पूर्व बी एच यू रेडियोथेरेपी विभाग के डाँ.यूपी शाही ,आयुर्वेद के संज्ञाहरण विभाग के प्रो .केके  पांडे तथा शोध छात्र सच्चिदानन्द ने कैंसर पीड़ित मरीजों पर शोध कार्य शुरू किया था | शोध कर्ताओं ने सात आयुर्वेदिक ओषधियों अश्वगंधा ,ब्राह्मी ,शंख पुष्पी,रासना ,अरंड ,निर्गुन्डी ,और भ्रंग राज  का परीक्षण १०० मरीजों पर किया |परीक्षण में मरीजों को दर्द से निजात मिली |
              आम तौर पर कैंसर के इलाज में सर्जरी ,कीमोथेरेपी और रेडियो थेरेपी विधी उपयोगी है |चिकित्सकों  के अनुसार इन विधियों से कोशिकाओं कि क्षति ज्यादा हो जाती है | जिसके चलते रोगीयों की प्रतिरोधक  क्षमता कम होने लगती है |प्रथम चरण में दर्द निवारण का समाधान ढूंढ़ लिया गया है|इन ओषधियों के मिश्रण  से दवा तैयार कर ली गयी है |दूसरे चरण के शोध में इस बात का पता लगाया जा रहा है कि कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं को कैसे उर्जावान बनाया जाये |इसके लिए गिलौय ,अदरक ,सतावरी तथा अश्व गंध पर परीक्षण किया जारहा है|     
                                        ||      वन्दे - मातरम ||

Friday, February 25, 2011

भरतीय राजनीती में भ्रष्टाचार :-
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एस बैंड पर पी. एम.ने भजपा को लपेटा ,मौका मिलते ही उलझे माननीय ,कलमाड़ी ने दिखाई आँख ...., और भी एसे अन्य समाचारों को समाचार पत्र के मुख्य प्रष्ट पर देख कर एसा प्रतीत होता है कि राजनीति राजनीति न रहकर  भरष्टाचार निति होगयी है | आज राजनीति का ढर्रा इतना बिगड़  गया है कि राजनीति के विकृत रूप के कारण यह पता लगाना कठिन हो रहा है कि भारत का राजमार्ग ही भ्रष्ट है या भ्रष्टाचार ही राजमार्ग मे घुस गया है | राजनीति रिवाज ,मर्यादा और सिद्धांत नाम की कोई चीज भारत में कही दिखाई नही देती |तत्कालीन नेता त्याग ,बलिदान ,देश -प्रेम और देश भक्ति जैसे गुणों से ओत -प्रोत होते थे |इन्हीं गुणों  के कारण अंग्रेज सरकार को भारत छोड़ना पड़ा | उस समय नेता देश को समर्पित होते थे अब पेट के लिए समर्पित है | अब ऊँचे से ऊँचा  पदासीन व्यक्ति भी कई करोड़ की सम्पत्ति का भंडार संचित कर रहा है |घोटालोंमें लिप्त होकर अपनी स्वयं की, अपनी पार्टी की ,तथा देश की छवि धूमिल कर रहें हैं |देश की गरीब जनता के लिए सुख सुविधा के प्रवचन तो अब केवल स्टेज और अख़बारों को ही सुशोभित करते हैं |
       किसी दल या पार्टी का गठन मोटे तौर पर किसी सिद्धांत के आधार पर ही होता है |उस सिद्धांत में आस्था और निष्ठा रखनेवाले लोग ही उस दल में सम्मिलित होते हैं |प्रत्येक दल का लक्ष्य सत्ता की प्राप्ति होता है ,आज तक यही होता आया  है कि विपक्ष आपनी सारी शक्ति सत्ताधारी दल को गाली देने ,बदनाम करने और किसी न किसी तरह सत्ता हासि लकरने  में लगा रहता है|आज लक्ष्य है सत्ता में जाना और सत्ता सुख ,सुविधा प्राप्त कर अपने कुल तथा रिश्तेदारों को लाभ पहुचानाही है |
         आज राजनैतिक दलों के परस्पर सम्बन्ध इतने कटु हो गये हैकि देश कि बड़ी से बड़ी समस्या पर भी आपस में विचार विमर्श करने के बजाये मिडिया के माध्यम से आरोप -प्रत्यारोप लगाते रहते हैं |उनके मन में यही धारणा घर किये रहती है कि विपक्ष कभी अच्छा कर ही नही सकता | जब विभन्न देश परस्पर मिल कर हित की बात कर सकते हैं तो विभिन्न दल परस्पर मिल कर राष्ट्र हित की बात क्यूँ नही कर सकते ? इस का कारण स्पष्ट है कि उन दलों और राजनेताओं में देश -भक्ति की भावना का आभाव है |राजनेताओं के लिए कोई सर्वमान्य आचार सहिंता नही है |जिसके आभाव में ही आज के नेता मनस्विता के अनुरूप आचरण करते दिखाई नही देते |
            देश में भ्रष्टाचार अब इतना सर्वव्यापी हो गया है ,कि किसी एक व्यक्ति ,व्यवसाय तथा संस्था कि ओर ऊँगली उठाने कि आवश्यकता नहीं |अब कोई भी स्तर ऐसा नही बचा जहाँ भ्रष्टाचार न हो | पहले केवल व्यापारी  को चोर और भ्रष्ट माना जाता था ,बाद में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी इस श्रेणी में गिने जाने लगे और अब तो आप देखते हैं कि इस व्यवसाय में प्रशासक और शासक भी शामिल हो गये है |अत: भ्रष्टाचार और अपराध अब अपराध नहीं रह गया है | हमारे जीवन का अंग बनगया है |अब आवश्यकता इस बात की है कि हम राजनैतिक संस्कार और आचार को बदलें |आपको अपनी सोच भी बदलनी हिगी |जैसे सेवा नि वृति का नियम होता है वही नियम राजनीति में भी लागू होना चाहिए | एक निश्चित आयु के बाद जैसे सभी सरकारी नौकर सेवा निवृत होतें हैं वैसे ही मंत्रियों और विधायको को भी सेवा निवृत किया जाये |
             यदि ऐसा नियम होता है तो बहुत कुछ भ्रष्टाचार राजनीति से कम होता नजर आएगा | भारत कि राजनीति में ऐसा नही होता |हर दल में एक विधायी पक्ष और दूसरा संगठन पक्ष होता है |जो नेता एक बार विधायी पक्ष मे चला जाता है वही सरकार कि कुर्सी से चिपका रहना चाहयता है ,फिर वह कुर्सी को नही छोड़ता| हमारी राजनैतिक व्यवस्था में एसे अनेक दोष है , जिनके कारण भ्रष्टाचार पनप रहा है |
              जब राजनीति में भ्रष्टाचार है तो जीवन के अन्य पक्ष भी अछूते नही रह सकते |भ्रष्टाचार महादैत्य होता है| हम नहीं कह सकते कि यह महादैत्य न जाने कब किस को निगल जाये |इसलिए सारे देश को उस संस्कार  और तंत्र के विरुद्ध खड़े हो जाना चाहिए ,जिस के कारण भ्रष्टाचार पैदा होता है बढ़ता है |
                                                  || वन्दे -मातरम् ||   
 

Tuesday, February 22, 2011

BHRSTACHAR OR BHARTVARSH

भ्रष्टाचार  एवं भारतवर्ष 
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            आज भारत वर्ष अपने आर्थिक विकास के लिए संघर्षरत है |देश अपने सभी प्राक्रतिक संसाधनो के पूर्ण  उपयोगो के लिए प्रयत्न शील है | परन्तु इसके लिए एक विपुल पूंजी की आवश्यकता है जो देश के पास नही है | यदि देश मैपूंजी निर्माण प्रयाप्त हो जाये तो देश अपने संसाधनो का विदोहन करने में सक्षम होगा और अपने उत्पादन और रोजगार दोनों में वृद्धी करसकेगा | 
        यूँ तो पूंजी के कमी के अनेक कारण है ,परन्तु आज देश में व्याप्त भ्रष्टाचार इस का एक प्रमुख कारण है |इस भ्रष्टाचार का आर्थिक प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है | आज हम देख रहे है कि ये चहुं ओर व्याप्त है | आज  लगभग प्रत्येक नागरिक ,हवाला घोटाला ,यूरिया ,प्रतिभूति ,चीनी , चारा , वफोर्स, कांमनवेल्थ ,स्पेक्ट्रम ,आदर्श घोटालों से परचित है |लाखों करोड़ों के घोटाले उजागर हो चुके है | औरइतने ही जाँच कि परधि में आ चुके है | घोटालों के स्वामी है देश के राजनेता एवं नौकरशाह | जनता ने जिन लोगों को देश की बागड़ोर सोंपी है वही लोग इन हरकतों मै लिप्त पाए जा रहे है | ऐसी अवस्था में जनता का सरकार पर से भरोसा उठ जाना स्वभाविक  है | 
भ्रष्टाचार के प्रभाव से देश में काले  धन की अतिशय वृद्धी होरही है |यदि किसी देश में काले धन की मात्रा बड़ेगी  तो देश में वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य अवश्य बढ़ेंगे क्यूँ कि इस से चारो तरफ अनियमितता फलेगी |काले धन का एक पहलू और भी है कि इस धन को पकड़े जाने के भयसे भ्रष्ट लोग इसे देश के बाहर स्विस बैंक या अन्य  बैंको में रखते है ,जिस का लाभ उन्ही देशों को मिलता है | इस प्रकार हमारे देश को नुकसान होता है | आज देश में सी .बी .आई .द्वारा मारे जा रहे छापों से स्पष्ट है कि नौकरशाहो एवं राजनेताओं के आवासों मै अकूत धन सम्पत्ति भरी पड़ी है|एसा अनुमान है कि देश के सम्पूर्ण काले धन को बरामद कर लिया जाये तो देश का विदेशी  कर्ज उतारा जा सकता है और बचे धन को विनियोजित करके उत्पादन और रोजगार मै वृद्धी कर सकते है| 
     ऐसेवातावरण में लोगों को आधिक जानकारी प्राप्त करने कि भूख बढ़ रही है जो राष्ट्र के लिए एक शुभ संकेत  है | एसा लगने लगा है कि न्यायालय ,देश के प्रति आपनी निष्ठा के कारण ही ,आज एक अभियान छेड़े हुए है  ताकि इस भयानक रोग को समूल नष्ट किया जा सके |
        मै ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि देश के इन कर्ण धारों को वो सदवुद्धि प्रदान करे ताकि ये भ्रष्टाचार को समाप्त करने में न्यायपालिका का साथ दें , तब ही बापू के रामराज्य के सपने को मूर्त रूप दिया जा सकेगा |
                                            ||वन्दे -मातरम् ||   

Wednesday, February 16, 2011

......... PAR NETAON KI TO MOUJ !

आम बजट से पूर्ब एक बार फिर महगाई पर खूब माथा पच्ची हो रही है | एक तरफ जहाँ इस को लेकर सरकार की किरकिरी हो रही है वही भ्रस्टाचार के मसले पर भी जनमानस में विद्रोह होता जा रहा है | ये नेता लोग महगाई , भ्रस्टाचार , काले -धन जैसी  समस्याओं पर सदन मै हो -हल्ला तो बहुत करते है पर कभी अपने खुद के गिरेवां में भी झाक करदेखते है कि हम भी कितने दूध  के धुले है | सियासी नफा नुकसान तो देखते है पर क्या कभी गरीब कीरोजी -रोटी के नफा -नुकसान का अंदाजा लगाते है| अभी से  कुछ एसा सुनाई दे रहा है कि सब्सिडी पर कुछ ध्यान दिया जाये | हाँ ........ ठीक| कहाँ ध्यान दोगे पता है गरीब कि भोजन कि थाली पर से सब्सिडी हटाओगे  और कर क्या सकते हो ? मै पूझता हु क्या इन नेताओ कि थाली से सब्सिडी कोई सरकार हटा सकती है ?
   महगाई के इस ज़माने मै क्या आप १२.५० रु. मै शाकाहारी थाली ,१.५० रु.एक कटोरी दाल औरएक रु. में एक रोटी मिलने कि कल्पना कर सकते है | नही न ... ........ ....पर संसद भवन कि कैंटीन में यह संभव है | यहाँ दसको से कीमत ऐसी ही है |ये सब एक गरीबी की रेखा से नीचे रहने बाले गरीब को ,(जो इन का वोट बैंक है)पता चल जाये तो वो वेचारा सुनते ही इस लोक  को छोड़ देगा |  
     ये जो नेता लोग इन सब मुद्दों पर धरना -प्रदर्शन करते है ,जल्लुस,बंद का आवाहन करते है |बाजार ,याता -यात बंद करते है | अपनी -अपनी रोटियां सेकते है ,मारा जाता है तो बिचारा आम इन्सान ,भूखे सोते है एक गरीब के बच्चे  , न जाने कितने दिन  मरी जाती है एक गरीब मजदूर की मजदूरी ?  पर ये नेता लोग तो मौज की खाते है इनको किसीकी कोई परवाह नही | ये ही नही इनके चाटुकार पत्रकार मित्र (जो इनको मुख्य पेज पर , ब्रेकिंग खबर पर रखते है ) भी इस सुभिधा का जमकर लाभ उठाते है | याद रखिये इन सब सस्ती चीजो के पीछे भारी सब्सिडी है |
  इन की थाली का ब्यौरा :-  दही-चावल - ११रु. ,वेज पुलाव -८रु. ,चिकिन बिरयानी -३४रु. ,फिश  करी चावल -१३रु. ,राजमा चावल -७रु., चिकन करी -२०रु. ,चिकन मसाला -२४.५०रु. ,बटर चिकन - २७रु. ,खीर (एक कटोरी )-५.५०रु. ,छोटा फ्रूट केक -९.५०रु. ,फ्रूट सलाद -७रु. |शाकाहारी थाली -१२.५०रु. ,मांसाहारी थाली -२२रु. |इन कीमतों की समीक्षा  वर्ष २००५ मे तेलगू देशम पार्टी के सांसद के. येरन नायडू की अध्यक्षता मे की गई |
                                                 ||वन्दे -मातरम ||      

Wednesday, February 9, 2011

INSANO KE DAS ABUJH RAHASYA--- ------- ------- -------

दोस्तों इस दुनिया मे न जाने कितने ही रहस्य एसे है जिनको सुलझाना आज भी एक चुनौती हैं | एसे ही कुछ रहस्य इंसानों के भी है जो आज भी वैज्ञानिको को चुनौती दे रहे है | वैज्ञानिको ने परमाणुओं  को विभाजित कर लिया ,मानव को चन्द्रमा पर पहुंचा दिया ,डीएनए का रहस्य जान लिया ,लेकिन मनुष्य के व्यवहार की तमाम  अबूझ  पहेलियों को वो आजतक नही सुलझा पाए | शरमाना, हंसी, चुम्बन,स्वप्न,अन्धविश्वास, नाक   पकड़ना ,  किशोरावस्था  ,   परोपकारिता, कला , मनुष्य के बाल , ये दस है अबूझ रहस्य
 विकास वाद के जनक डार्विन पूरी उम्र इस गुत्थी को सुलझाने में जुटे रहे कि झूठ बोलने पर इन्सान का चहरा शर्म  से  लाल क्यूँ हो जाता है | शायद शरमाने से इन्सान अपनी कमजोरी ,या विवाद से बचने या नजदीकियां बड़ाने कि  कोशिश  करता है |
  जब हम खिलखिला कर हसते है तो मूड बढ़िया हो जाता है और दर्द छूमंतर हो जाता है | लेकिन अनगिनत अधधयनो के  बाद  भी वैज्ञानिक मुस्कराने या हसने के पीछे के  राज को खोल पाने मे नाकाम रहे | दस सालो के अधधयन से पता चला कि मजाक कि बजाय घिसे पिटे बयानों पर लोग ज्यादा हँसते है |
 वैज्ञानिक चुम्बन लेकर अभिवादन को अनुवांशिक मानते है क्योंकि सभी समाजों में ये प्रचलन में नही है |कई जगह कहा गया है कि आदिम मनुष्य अपने शिशुओं में स्तन पान कि आदत छुड़ाने के लिये उनका चुम्बन लेता था |  चुम्बन के आदान प्रदान से  ख़ुशी का इजहार भी किया जाता है , पर इस तर्क का जबाव आज तक नही मिला |
मशहूर मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने कहाथा कि इन्सान अपनी अधूरी इच्छाओं को सपने के द्वारा व्यक्त करता  है  जिनेह दूसरे सामान्य तोंर पर मान्यता नही देते | लेकिन एसा क्यूँ होता है और भयावह सपनों कि वजह क्या होती है     किसी वैज्ञानिक को नही मालूम |
मनुष्य कि असमान्य लेकिन बारबार दोहराने वाली आदतों के बारे मै कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है | प्रागैतिहासिक  मनुष्य तमाम दुर्घटनाओं से बचने के लिये अंधविश्वासों से युक्त टोटको को अजमाता आया है | धार्मिक  परम्पराओ ने इसे बल दिया लेकिन २१ वीं सदी मे भी ऐसे अंधविश्वास क्यों कायम है किसी को नहीं पता |
अक्सर  लोग बारबार अपनी नाक पकड़ते है ऐसी हरकत का शरीर  का कोई फायदा नहीं होता | मगर किशोरावस्था  मे १/४ व्यक्ति औसतन चार बार ऐसा करता है |कुछ का मानना है कि इससे प्रतिरोधक क्षमता बड़ती है |
 केवल मानव शरीर ही किशोरावस्था से गुजरता है |वैज्ञानिकों के अनुसार कोई अन्य जीव ऐसी अविश्वसनीय अवस्था  से नहीं गुजरता |कुछों का मानना है कि शरीर भवष्य कि जिम्मेदारियों के प्रति खुद को तैयार करता है |
परोपकारिता में कुछ ना मिलने के बाबजूद इन्सान दूसरों कि मदद  करता है| हम लोग समझते है कि इससे रिश्ते मजबूत होते है और खुशी मिलती है यह व्यवहार सब मनुष्यों मे क्यों नही दिखता यह गूड़ रहस्य है |
पेंटिंग ,न्रत्य ,शिल्पकला और संगीत सभी एक दूसरे को प्रभावित करने कि कलाएं है  | यह ज्ञान बड़ाने और अनुभव बाटने का साधन हैं |पर इसके अनुवांशिक या विकासवादी व्यवहार पर कुछ नही कहा गया |
शरीर पर हल्के रोंये  और  जननांगों  पर  घने बालों का लक्षण मनुष्य को अन्य जीवों से अलग करता है| ऐसा क्यूँ ?  इसके बारे में भी वैज्ञानिक कोई कारण नही बता पाए है | 
        इस तरह हमने देखा कि ये इंसानों के र्ह्श्य आज भी अनसुलझे ही है |जो वैज्ञानिकों के लिये चुनोती ही बने रहेंगे |
                                                    || "वन्दे  मातरम "||

Tuesday, January 25, 2011

make-up ke saukin

दोस्तों  आज कल शादियो का मौसम  चल रहा है| महिलाए हो या पुरुष सबको सुन्दर और स्मार्ट दिखने की चाहत होती है |यह तमन्ना आज के मनुष्यों की ही नहीं आदिमानवो के दिलो में भी थी,बदसूरत होने के बाबजूद आदिमानव भी सजने सवरने में यकीन रखते थे|
 आज के इस कॉस्मेटिक युग में भी जहाँ हजारो तरह के सोंदर्य प्रसाधन  सामिग्रिया बाजारों में मोजूद है  जो आपको सुन्दर और जवान दिखने का दावा करती है |इस आधुनिक  दौर  मे जब कॉस्मेटिक इंडस्ट्री  का कारोबार कई अरबो   का है और सारा जोर दिखने -बिकने पर है तो ऐसे  मे हजारो साल पहले के आदिमानवो मे इस हुनर का होना चौकाता hai |लकिन पुरातत्वविदों को  इस बात के पुख्ता सबूत मिले है| 
               ब्रिटेन के शोध कर्ताओ ने अपने अध्ययन  मे पाया  कि लगभग पचास हजार वर्ष पूर्व आदिमानव भी कॉस्मेटिक्स का उपयोग करते थे | ब्रिस्टल  यूनिवर्सिटी  के प्रोफेसर जोआओ जिल्हाओ के अनुसार ,यह पहला सबूत है पुरातत्वविदों का यह शोध  ऐसे समुंदरी शैलो के विश्लेषण पर आधारित  है जिनमे शोध कर्ताओ  को रंग मिले है | माना जा रहा  है कि इनका उपयोग आदिमानव मेक -अप बॉक्स के रूप मे करते थे | ऐसे बॉक्स विशेषज्ञों को दो ऐसे स्थानो से मिले है जहाँ पर आदिमानवो से जुड़े है | यह शोध "प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल अकेडमी ऑफ़ साइंसेज" मे प्रकाशित हुए है |
                                  "वन्दे मातरम "
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Saturday, January 8, 2011

BHUKH HADTAL.... ........

भूख हड़ताल के दो सौ बरस .....
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दोस्तों ये शब्द तो आपने न जाने कितनी बार सुना होगा पर आप को इस के इतिहास के बारे में कुछ पता है नही न मैंआप को बताता हूँ ये कब शुरु हुई? 
   दोस्तों इस की शुरुआत दो सौ एक साल पहले २६ दिसंबर १८०९ को बनारस में भूमि एवं भवन कर के मुद्दे पर हुई थी |
  प्रख्यात विद्वान डॉ.भानुशंकर मेहता की पुस्तक "निराले बनारस "के मुताबिक  १८०९ में बनारस के तत्कालीन कलेक्टर मि. बर्ड ने शहर वासियों  पर भूमि एवं  भवन कर थोप दिया था | गौरीकेदारेश्वर मंदिर (स्वयं भू  शिवलिंग ) के तत्कालीन  महंत परिवार से जुड़े पाँच सदस्यों ने अंग्रेजी हुकूमत के इस फरमान की मुखालफत करते हुए भूख हड़ताल की | हजारो लोगो ने अपने घर में ताला जड़ दिया और गंगा पार चल दिए | प्रदर्शनकारियोंने गंगाजल, फल और किसानो द्वारा  उपलब्ध कराये गए अन्न के बूते तीन सप्ताह से अधिक का समय खुले आकाश के निचे गुज़ार दिया| लगभग एक महीने तक चले इस जनविरोध के चलते बर्ड को कर वापस लेना पड़ा था |
                   बनारस  के लोग हर साल इस घटना कि याद में घर छड़ी  पर्व  मानते  हैं |
                                       "वन्दे मातरम " 

Sunday, January 2, 2011

JAI JAGDISH HARE..... ....... ....

दोस्तों नमस्कार , पिछले सन्देश मै मैंने इस नव-वर्ष का अभिनन्दन करने के साथ-साथ प्रभु कि वंदना के लिये भी लिखा था |अक्सर हम हिन्दू लोग प्रभु-वंदना मै सबसे पहली आरती ॐ जय जगदीश ....... ही गाते है ,लेकिन इसके  रचयिता के बारे मै बहुत कम लोगो को पता होगा |
          इन का जन्म  पंजाब मै लुधियान के पास फुल्लोर मै सं १८३७ मै हुआ | इनके पिता का नाम पं जयदयालू था | १८७० मै रची इस रचना के रचनाकार का नाम  पं श्रदारामथा |इन के जीवन कल मै लोगो ने इनको जब पहचाना जब इनकी कि ये आरती अपने भावो और स्वरों के कारण धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगी |
         पंडित जी ने पंजाबी मै भी कई पुस्तकें भी लिखी | पंडित जी कि इस  आरती ने मानो लोगों को इश्वर से संवाद का एक सहज मार्ग दे दिया हो |  तभी से यह आरती घर-घर मे गाई जाने लगी और पूजा अर्चना में इसका अपना महत्व हो गया | इस आरती के बोल लोगो की जुबान पर ऐसे चड़े कि आज पीड़ियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है |
                                   ||वन्दे - मातरम ||