बेटे या बेटियां :-
========== लड़कियों ने फिर बाजी मारी |जो अक्सर इन दिनों सुना जाता है , बारहवी के रिजल्ट आ गए, उससे पहले दसवीं की आए और हर अखवार की यही हेड लाइनथी कि लडकियों ने फिर बाजी मार ली | तमाम बन्धनों के बावजूद लडकियाँ कैसे मारजाती हैं बाजी |
इस बात को नकारा नही जा सकता हैं कि बेटियों (लडकियों ) मेंजहाँ मन को बांधे रखने कि क्षमता होती है वहीं दूसरी ओर वे पढ़ाकू भी होती हैं | उन्हें बेटों कि तरह न तो बाहर जाने की छूट होती हैं न ही देर तक घर से बाहर रहने की इजाजत मिलती है | माता - पिता का कंट्रोल बेटों की अपेक्षा बेटियों पर ज्यादा होता है |माता -पिता चाहे कितने शिक्षित या उच्च पद पर क्यों न हो ,बेटी को घर का काम सिखाने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहयते | इस लिए बहुत सारी चीजों को एक साथ करने की आदत उसे मेहनती बना देती हैं |
बेटियों के साथ तो यह भेद भाव तो सदियों से चला आरहा है | बेटियां चाहे अपने परिवार का कितना ही नाम रोशन करलें कैसी ही परिस्तिथियों में ,पर पूजा जाता है तो बस इन कुल दीपकों को | इस विषय पर आज एक कविता मुझे बार - बार याद आ रही है जिसे मैं आप के लिए लाया हूँ
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बोये जाते हैं बेटे , और उग आती हैं बेटियां |
खाद पानी बेटों में , और लहलहाती हैं बेटियां |
एवरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
और चढ़ जाती हैं बेटियां ||
रुलाते हैं बेटे और रोती हैं बेटियां |
कई तरह गिरते हैं और गिराते हैं बेटे ,
और सम्भाल लेती हैं ,बेटियां ||
सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे ,
जीवन का यथार्थ होती हैं बेटियां ||
जीवन तो बेटों का हैं ,
और मारी जाती हैं बेटियां ||
दोस्तों सोचो ,समझो , ....... ये कविता आप को कैसी लगी ..... क्या ये सच नही ?
आपके सुविचारों की प्रतीक्षा मै........... ...... आप का ये दोस्त |