Wednesday, February 9, 2011

INSANO KE DAS ABUJH RAHASYA--- ------- ------- -------

दोस्तों इस दुनिया मे न जाने कितने ही रहस्य एसे है जिनको सुलझाना आज भी एक चुनौती हैं | एसे ही कुछ रहस्य इंसानों के भी है जो आज भी वैज्ञानिको को चुनौती दे रहे है | वैज्ञानिको ने परमाणुओं  को विभाजित कर लिया ,मानव को चन्द्रमा पर पहुंचा दिया ,डीएनए का रहस्य जान लिया ,लेकिन मनुष्य के व्यवहार की तमाम  अबूझ  पहेलियों को वो आजतक नही सुलझा पाए | शरमाना, हंसी, चुम्बन,स्वप्न,अन्धविश्वास, नाक   पकड़ना ,  किशोरावस्था  ,   परोपकारिता, कला , मनुष्य के बाल , ये दस है अबूझ रहस्य
 विकास वाद के जनक डार्विन पूरी उम्र इस गुत्थी को सुलझाने में जुटे रहे कि झूठ बोलने पर इन्सान का चहरा शर्म  से  लाल क्यूँ हो जाता है | शायद शरमाने से इन्सान अपनी कमजोरी ,या विवाद से बचने या नजदीकियां बड़ाने कि  कोशिश  करता है |
  जब हम खिलखिला कर हसते है तो मूड बढ़िया हो जाता है और दर्द छूमंतर हो जाता है | लेकिन अनगिनत अधधयनो के  बाद  भी वैज्ञानिक मुस्कराने या हसने के पीछे के  राज को खोल पाने मे नाकाम रहे | दस सालो के अधधयन से पता चला कि मजाक कि बजाय घिसे पिटे बयानों पर लोग ज्यादा हँसते है |
 वैज्ञानिक चुम्बन लेकर अभिवादन को अनुवांशिक मानते है क्योंकि सभी समाजों में ये प्रचलन में नही है |कई जगह कहा गया है कि आदिम मनुष्य अपने शिशुओं में स्तन पान कि आदत छुड़ाने के लिये उनका चुम्बन लेता था |  चुम्बन के आदान प्रदान से  ख़ुशी का इजहार भी किया जाता है , पर इस तर्क का जबाव आज तक नही मिला |
मशहूर मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने कहाथा कि इन्सान अपनी अधूरी इच्छाओं को सपने के द्वारा व्यक्त करता  है  जिनेह दूसरे सामान्य तोंर पर मान्यता नही देते | लेकिन एसा क्यूँ होता है और भयावह सपनों कि वजह क्या होती है     किसी वैज्ञानिक को नही मालूम |
मनुष्य कि असमान्य लेकिन बारबार दोहराने वाली आदतों के बारे मै कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है | प्रागैतिहासिक  मनुष्य तमाम दुर्घटनाओं से बचने के लिये अंधविश्वासों से युक्त टोटको को अजमाता आया है | धार्मिक  परम्पराओ ने इसे बल दिया लेकिन २१ वीं सदी मे भी ऐसे अंधविश्वास क्यों कायम है किसी को नहीं पता |
अक्सर  लोग बारबार अपनी नाक पकड़ते है ऐसी हरकत का शरीर  का कोई फायदा नहीं होता | मगर किशोरावस्था  मे १/४ व्यक्ति औसतन चार बार ऐसा करता है |कुछ का मानना है कि इससे प्रतिरोधक क्षमता बड़ती है |
 केवल मानव शरीर ही किशोरावस्था से गुजरता है |वैज्ञानिकों के अनुसार कोई अन्य जीव ऐसी अविश्वसनीय अवस्था  से नहीं गुजरता |कुछों का मानना है कि शरीर भवष्य कि जिम्मेदारियों के प्रति खुद को तैयार करता है |
परोपकारिता में कुछ ना मिलने के बाबजूद इन्सान दूसरों कि मदद  करता है| हम लोग समझते है कि इससे रिश्ते मजबूत होते है और खुशी मिलती है यह व्यवहार सब मनुष्यों मे क्यों नही दिखता यह गूड़ रहस्य है |
पेंटिंग ,न्रत्य ,शिल्पकला और संगीत सभी एक दूसरे को प्रभावित करने कि कलाएं है  | यह ज्ञान बड़ाने और अनुभव बाटने का साधन हैं |पर इसके अनुवांशिक या विकासवादी व्यवहार पर कुछ नही कहा गया |
शरीर पर हल्के रोंये  और  जननांगों  पर  घने बालों का लक्षण मनुष्य को अन्य जीवों से अलग करता है| ऐसा क्यूँ ?  इसके बारे में भी वैज्ञानिक कोई कारण नही बता पाए है | 
        इस तरह हमने देखा कि ये इंसानों के र्ह्श्य आज भी अनसुलझे ही है |जो वैज्ञानिकों के लिये चुनोती ही बने रहेंगे |
                                                    || "वन्दे  मातरम "||

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