Saturday, March 3, 2012

अण्डों की मार
==============एक खबर :- "अंडों की मार से बचने के लिए छिपे सरकोजी " अरे ये क्या महामहिम आप अंडों से ही डर गये , ये आपने क्या किया ? अपने दुर्भाग्य को आपने गले लगालिया| अरे भारत आकर देखिये ,यहां के नेता किसी मार से नही डरते ,चाहे वो सदन की कुर्सी ,पंखा या माइक या पुलिसिया डंडे की मार हो ,सब कुछ झेलने में माहिर है और इसे अपनी वीरता समझते हैं | और अगर पब्लिक से इनको जूता ,चप्पल , थप्पड़ खाने को मिलजाए तो उसे ये अपना सौभाग्य समझते हैं | भगवान के परसाद से इनको इतनी आनन्द की अनुभूति नहीं होती जितनी जूता ,चप्पल , थप्पड़ खाने में होती हैं | मैं तो यही कहूँगा कि आपने अपना भविष्य ख़राब करलिया ,राजनीति छोड़ दीजिये , इस क्षेत्र में जो डर गया समझो मर गया ,जो झेल गया समझो सात पीड़ियाँ तार लेगया| अगर मेरी बात पर विश्वास ना हो तो भारत आकर लोगों से पूछ लो , बच्चा -बच्चा सारा इतिहास बता देगा |  जब ही तो हम कहते हैं "मेरा देश महान " | जये हिंद ||  

Friday, March 2, 2012

mere sath chal: आओ ! कचरा करें :-

mere sath chal: आओ ! कचरा करें :-: आओ ! कचरा करें :- ============================ दोस्तों आदमी और कचरे का संबंध काफी अटूट है ।आदमी है तो कचरा होना लाजमी है । मच्छर मलेरिया फ...

आओ ! कचरा करें :-

आओ ! कचरा करें :-
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दोस्तों आदमी और कचरे का संबंध काफी अटूट है ।आदमी है तो कचरा होना लाजमी है । मच्छर मलेरिया फैलाता है ,मक्खी हैजा ,चूहा प्लेग फैलाता है ,तो आदमी कचरा ।बल्कि कहना चाहिए कि मनुष्य तो इन से भी दो कदम आगे है ।कचरा करना तो आदमी कि जन्म जात प्रवर्ति है ।हिमालय कि चोटियाँ इस बात कि साक्षी है ।जब तक वे आदमी की पहुच से दूर रहीं ,स्वच्छ बनी रहीं ।परन्तु जब से आदमी को पर्वतारोहण का शौक चर्राया तब से इन को भी नहीं छोड़ा ।फिर कचरा भी कैसा -कैसा ? प्लास्टिक के डिब्बे ,पालीथीन की थैलियाँ , इत्यादि जिनको प्रकर्ति भी  ठिकाने नहीं लगा सकती ।
      यह कितनी अजीब बात है कि जो व्यक्ति जितना अधिक साफ -सफाई पसंद है वह उतना ही अधिक गंदगी फैलाता है ।रोज -रोज नहाने वाला ,कभी कभार नहाने वाले कि अपेक्षा ज्यादा पानी गन्दा करता है ।नहाने -धोने के लिए साबुन ,शैम्पू और डिटरजेंट का उपयोग करने वाला सादा पानी से नहाने -धोने वाले के मुकाबले पानी को ज्यादा ख़राब तरीके से गन्दा करता है । प्रसाधन सामग्री का प्रचुर प्रयोग पर्याप्त प्रदुषण पैदा करता है । इन वस्तुओं के निर्माण के समय फैक्ट्रियां भी गंदे अवशिष्ट फैंकती है । फिर इन की पैकिंग में लगने वाला कागज ,गत्ता ,पन्नी  आदि भी तो अंतत: कचरा बनता है ।
        आज का युग ओध्योगीकरण  का है ,जिसका मूर्त रूप है निरंतर धुंआ उगलती मिलें, कारखाने ।जहां जितने अधिक कारखाने ,वह देश उतना ही उन्नत ।इसका परिणाम तो आप जानते ही है - अधिक कचरा और अधिक प्रदूषण ।इसका अर्थ यह हुआ कि कचरा प्रगति का प्रतीक और समुन्नत होने का लक्षण है ।मेरे विचार से किसी देश कि उन्नति का स्तर इस बात से आंका जाना चाहिए कि वहां प्रति व्यक्ति प्रतिदिन / प्रतिवर्ष कितना कचरा उत्पन्न करता है ।
          एक बात और ।सभ्य आदमी अपने कचरे को अपने से दूर दूसरों के इलाके में फैकता है ।जो जटिल गंवार है , वे गंदगी के बीच रहते है ,घर का कचरा घर के सामने ही डाल देते है ।परन्तु जो अपेक्षाकृत सभ्य हैं , वे अपना कचरा पड़ोसी के दरवाजे या दो -चार मकान आगे या सार्वजनिक स्थान पर डाल देते हैं ।आबादी बढने से हालात यह है कि आप कचरा कहीं भी फैकें ,वहां किसी न किसी का दरवाजा तो होगा ही ।और फिर शहर भी इतने बड़े होगये हैं कि म्युनिसिपल्टी वालों तक को उससे बाहर जा कर कचरा फैकना एक समस्या हैं ।फिर अबतो शहर के बाहर भी निर्जन स्थान कहाँ ?
           वास्तव में जो जितना सभ्य है ,वो उतना ही खतरनाक कचरा करता है ।विकसित देश अपने परमाणु परीक्षण महासागर में करते हैं ,इससे वे खुद तो रेडियो धर्मी कचरे से बचे रहते हैं ,महासागर वाले द्वीप ,और जीव -जंतु प्रभावित होते हैं ,तो हों ।उन्होंने अंतरिक्ष को भी नहीं छोड़ा ,चन्द्रमा को भी नहीं और तो और अब मंगल के बारे में प्रयास कर रहे हैं ।सोचने वाली  बात ये है कि जो रसायन ,मशीनरी ,दवाइयां और हथियार उनके यहाँ प्रतिबंधित हैं कचरा हैं उनको वे हमारे जैसे देशों को बड़े एहसान से निर्यात कर रहे हैं और हम उनके इस कचरे के लिए लार टपका रहे हैं ।
            इस भौतिक कचरे के अलावा एक अन्य प्रकार का अमूर्त कचरा भी होता है ।जिसकी आजकल बहुत चर्चा है ।यह कचरा मन -मस्तिष्क को प्रभावित करता है । पुरातनपंथी इसे सांस्क्रतिक प्रदुषण कि संज्ञा देते हैं । उनके अनुसार यह प्रदूषण समाज में अनाचार -और भ्रष्टाचार जैसी बीमारियां फैलाता है ।किन्तु आधुनिक उदारमान सज्जन इसे बुरा नहीं समझते बल्कि अन्य कचरे की भांति इसे भी उन्नति का रूप समझते हैं ।
               उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कचरे का उन्नति से सीधा संबंध है , तो उन्नतिशील कहलाने के लिए आओ हम सब मिलकर खूब कचरा करें ।
                                    
                                     ।।बुरा न मनो होली है ,मान भी जाओ तो ..... हुड्दंगा है ।।        
    

Tuesday, February 21, 2012

Monday, January 30, 2012

हे राम


हे राम
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दोस्तों बापू कि ६४ वीं पुण्य तिथि पर मैं बापू के जीवन क्रम को प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
१८६९ - २ अक्तूबर को पोरबंदर में जन्म |
१८७६ - राज कोट में शिक्षारम्भ; कस्तूरबा से सगाई |
१८८३ - कस्तूरबा से विवाह |
१८८५ - पिताजी कि म्रत्यु |
१८८७ - मैट्रिक परीक्षा पास ;भाव नागर के सामल दास कालेज में दाखिला |
१८८८ - ४सितम्बर को शिक्षा के विलायत रवाना |
१८८९ - पहला सार्बजनिक भाषण --इंग्लैण्ड कि निरामिषहारियों कि सभा में |
१८९१ - १० जून को बैरिस्टर हुए ; ७ जुलाई को बम्बई पहुचे ;माता जी की म्रत्यु का समाचार मिला |
१८९२ - राजकोट तथा बम्बई में वकालत |
१८९३ - अप्रेल में मुकदमे के लिए दक्षिण अफ्रीका रवाना |
१८९४ - जिस मुकदमे के लिए दक्षिण अफ्रीका गये थे ,उस का पञ्च -फैसला हुआ |
१८९५ - नेटाल सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट हुए ; नेटाल भारतीय कांग्रेस का संगठन |
१८९६ - छ: मास के लिए भारत आगमन ; तिलक , गोखले आदि नेताओं से भेंट ; २८ नवम्बर को वापसी |
१८९७ - डरबन लौटने पर विरोधी प्रदर्शन ;जीवन में महान परिवर्तन |
१८९९ - बोअर -युद्ध में अंग्रेजों की सहयता |
१९०१ - राजकोट में महामारी -कमेटी दुवारा सेवा ;भारत आगमन ; कलकत्ता में कांग्रेस में शामिल |
१९०२ - बर्मा यात्रा ;रेल के तीसरे दर्जे में भारत प्रवास |जुलाई में बम्बई में आफिस ;तीन महीने बाद अफ्रीका पुन:प्रस्थान |
१९०३ - ट्रांसवाल ब्रिटिश इण्डिया एसोसिएशन की स्थापना ; इन्डियन ओपिनियन की स्थापना |
१९०४ - गीता अध्यन , रिस्कन "अन्टूदिस लास्ट " को पढ़ कर जीवन में क्रन्तिकारी परिवर्तन ; फिनिक्स -आश्रम की स्थापना |
१९०६ - जुलू -विद्रोह ;घायलों की सेवा ; ब्रह्मचर्य से रह ने की प्रतिज्ञा ; सत्याग्रह शब्द का अविष्कार ; शिष्ट मंडल के सदस्य के तौरपर इंग्लैण्ड रवाना |
१९०७ - खुनी कानून के विरुद्ध सत्याग्रह |
१९०८ - अंतरिम समझोता ;पठान द्वारा हमला ; पुन : सत्याग्रह ; गिरफ़्तारी |
१९०९ - टालस्टाय को पहला पत्र ; दूसरी बार मंडल में इंग्लैण्ड रवाना ; वापसी में जहाज पर "हिंद -स्वराज्य " लिखा |
१९१० - जोहान्सबर्ग में टालस्टाय- फार्म की स्थापना |
१९१२ - गोखले की अफ्रीका की यात्रा ; "नीति धर्म ' प्रकाशित ; "आरोग्य -विषयक सामान्य ज्ञान " पुस्तक लिखी |
१९१३ - सत्याग्रह फिर आरम्भ ; गिरफ्तारी व् रिहाई ;सात दिन का उपवास तथा साढ़े चार मास तक एक समय भोजन |
१९१४ - १४ दिन का उपवास ; सत्याग्रह की सफलता ४ अगस्त से प्रथम महा युद्ध ; सरोजनी नायडू से परिचय |
१९१५ - "कैसरे -हिंद " मैडल की प्राप्ति ;काका कालेलकर व् आचार्य कृपलानी से परिचय ; १९ फरबरी को गोखले की म्रत्यु |
१९१६ -- काशी विश्वविध्यालय की स्थापना ;भाषण ;लखनऊ कांग्रेस मै जवाहर लाल नेहरु से पहली बार भेंट |
१९१७ - राजेंद्र बाबु से पहली भेंट ;१९ अप्रेल को चम्पारण सत्याग्रह ;३१ मई को गिरमिटिया कानून रद्द ;३०जुन को दादा भाई नोरोजी की म्रत्यु |
१९१८ - अहमदाबाद में मजदूरों के साथ तीन दिन का उपवास ; खेडा -सत्याग्रह ;चरखे का पुनर्द्धार|
१९१९ - रौलट -कानून ;६ अप्रैल उपवास दिवस ;१३ अप्रैल को जलियाँ वाला बाग कांड ;यंग इण्डिया ,नवजीवन का सम्पादन शुरू |
१९२० - १अगस्त को लोकमान्य तिलक की मृत्यु ;गाँधी जी द्वारा तैयार कांग्रेस का संविधान स्वीकृत ;असहयोग आन्दोलन आरम्भ |
१९२१ -- प्रिंस आफ वेल्स के आगमन के बहिष्कार के कारण दंगा ; ५दिन का उपवास |
१९२२ - ५ फरवरी को चौराचोरी कांड ;५दिन का उपवास ; १० मार्च को गिरफ़्तारी ; ६ वर्ष की सजा |
१९२४ - अपेंडीसाइटिस का आपरेशन ; ५ फरवरी को रिहाई ;२४ सितम्बर को हिन्दू - मुस्लिम एकता के लिए २१ दिन का उपवास |
१९२५ -चरखा संघ की स्थापना |
१९२७ - खादी यात्रा ; |
१९२८ - साइमन कमीशन ; बारडोली - सत्याग्रह ; १७ नवम्बर को लालाजी की म्रत्यु ;|
१९२९ - लाहौर कांग्रेस में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव |
१९३० - २६ जनवरी को पूर्ण स्वाधीनता की प्रतिज्ञा ; १२मर्च को नमक कानून तोंड़ने के लिए दांडी- यात्रा ; ५ मई को गिरफ्तारी |
१९३१ - ४ जनवरी को इंग्लैण्ड में मौ .मुहम्मद अली की म्रत्यु ;२५ जनवरी को रिहाई ;६ फरवरी को पं .मोती लाल नेहरु की म्रत्यु ;४ मार्च को गाँधी इरविन पैक्ट ;२४ मार्च को भगत सिंह को फासी
२५ मार्च को गणेश शंकर विद्यार्थी का वलिदान ;दूसरी गोल मेज -कांफ्रेंस में भारत के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में शामिल ;दिसम्बर में कांफ्रेस से खली हाथ लौटे |
१९३२ - कांग्रेस गैरकानूनी घोषित ;सत्याग्रह फिर से आरम्भ ; ४ जनवरी को गिरफ़्तारी ;नवजीवन ,यंग इण्डिया पत्र बंद ;२० सितम्बर से सामप्रेदायिक निर्णय के विरोध में आमरण अनशन ;२४
सितम्बर को यरवदा पैक्ट ;२६ सितम्बर को उपवास समाप्त |
१९३३ - ८ मई से २१ दिन का उपवास ; "हरिजन " पत्र का शुरू ;एक वर्ष की सजा ;१६ अगस्त से आमरण उपवास जो एक सप्ताह चला ;२० सितम्बर को एनी बेसेंट की मृत्यू ; २२ सितम्बर को
विट्ठल भाई पटेल की मृत्यू ; साबरमति आश्रम का विसर्जन ; वर्धा में रहने का निश्चय ;७ नवम्बर से हरिजन - यात्रा |
१९३४ - बिहार - भूकंप ; ७ मई को सत्याग्रह स्थगित ; ७ दिन का उपवास ; २६ अक्तूबर को ग्रामोधियोग -संघ की स्थापना ;
१९३५ - कांग्रेस की स्वर्ण जयंती |
१९३६ - १० मई को डा . अंसारी की मृत्यू ; सेवा - ग्राम आश्रम की स्थापना |
१९३७ - जुलाई में कांग्रेस -पद ग्रहण ; ने तालीम शुरू |
१९३९ - ४ जनवरी को मौ . शौकत अली की मृत्यू ; राजकोट में आमरण अनशन ; वाईसराय के हस्तक्षेप से ४ दिन में समाप्त ; सुभाष बाबु का कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्याग | ३ सितम्बर को
दूसरा विश्व युद्ध शुरू ; |
१९४० - ११ अक्तूबर से व्यक्तिगत सत्याग्रह - बिनोवा प्रथम सत्याग्रही ; हरिजन पत्रों पर रोक |
१९४१ - ७ अगस्त को रविन्द्रनाथ ठाकुर की मृत्यू ; ३० सितम्बर को गो -सेवा -संघ की स्थापना |
१९४२ - कांग्रेस का नेत्रत्व ; ११ फरवरी को सेठ जमना लाल की मृत्यू ; क्रिप्स मिशन ; हिन्दुस्तानी प्रचार - सभा की स्थापना ; ८ अगस्त को भारत छोडो प्रस्ताव ; ९ अगस्त को पूरे भारत में
सामूहिक गिरफ्तारियां ; १५ अगस्त को महादेव भाई की मृत्यू |
१९४३ - आगाखां महल में २१ दिन का उपवास |
१९४४ - २२ फरवरी को कस्तूरबा गाँधी की मृत्यू ; ६ मई को जेल से रिहाई ; गाँधी -जिन्ना वार्ता |
१९४५ - जेल से सभी नेताओं की रिहाई ;पहली शिमला कांफ्रेंस |
१९४६ - केबिनेट - मिशन ;मुस्लिम लीग दुवारा १६ अगस्त को "सीधी कार्यवाही " का दिन ;साम्प्रदायिक दंगे ;नोआखाली की पैदल यात्रा शुरू |
१९४७ - १५ अगस्त को स्वतंत्रता -प्राप्ति ; कलकत्ता में ७३ घंटे का उपवास |
१९४८ - दिल्ली में शांति -स्थापना तथा आमरण अनशन ; पांच दिन चला | ३० जनवरी को महाप्रयाण |

हे राम !

जय भारत ,जय हिंद ,जय बापू ||

Saturday, January 14, 2012

BARF,DHOOP,OR AANKHEN

बर्फ,धूप,और आँखें :-   
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      नमस्कार दोस्तों ,बर्फ की चादर ओढ़े पहाड़ों पर सूरज भी ईद के चाँद जैसा होता है |मुश्किल से नजर आता है , और जब इसका दीदार होता है तो सभी इसको देखने के लिए निकल पड़ते है |बर्फ के पहाड़ की चोटीसे निकलता हुआ सूरज ..... बड़ा ही मनोहारी द्रश्य होता है लेकिन दोस्तों बर्फीले इलाके में धूपखाना अक्लमंदी नहीं |इस से आँखों का नूर छिन सकता है |एक जापानी रिसर्च के मुताबिक बर्फीले इलाके में अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर समुन्द्र तटीय इलाके से ढाई गुना ज्यादा हानिकारक है |
             कनाजावा मेडिकल युनिवर्सटी के वैज्ञानिक उत्तरी जापान स्तिथ इशिकावा प्रिफेक्चर में ताजा गिरी बर्फ पर प्रकाश का परावर्तन परखने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे |इस के लिए उन्होंने यहाँ पर बसे कृतिम तट में अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर भी आंका | शोधकर्ताओं के अनुसार तटीय क्षेत्र में आँखें रोजाना २६० किलोजूल प्रति वर्ग मीटर अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में रहती हैं |जबकि बर्फीले इलाके में यह आकड़ा ६५८ किलोजूल / वर्ग मीटर है |शोधकर्ताओं की मानें तो अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा से ज्यादा आखों के लिए खतरनाक हैं | बर्फीले इलाके में इनसे बचना है तो सनग्लास से बेहतर होगा किआप गागल्स लगायें |
               इन जगहों पर धूप में ज्यादा देर तक रहने से स्नो ब्लाइंडनेस ,मोतियाबिंद , और आँखों में जलन खतरा बड़ जाता है |समुंद्री तट पर अल्ट्रावायलेट किरणों का परावर्तन अमूमन १० से २५ फीसदी के बीचहोता है | वहीं बर्फीले इलाके में यह ८५ फीसदी है |३०० मीटरऊंचाई बढने पर यह स्तर ४ फीसदी तक बड़ जाता है |
                देखा दोस्तों हम तो यही कहेंगे कि सुन्दरता को जी भर के निहारिये पर जरा एतिहात से ....|
    

Sunday, January 8, 2012

सा...... करेक्टर ढीला हैं ....
=====================  ============       नमस्कार मित्रो ,हमारी राजनीती और राजनेताओं का चरित्र दिनों -दिन कितना अधोगामी होता जा रहा हैं
यह एक सोचनीय बिषय बनता जा रहा हैं | ये सब कुछ आज से नही वर्षों पहले से होता आया हैं|पहले इक्का
दुक्का पर अब तो कुछ वर्षों से लगातार इनके चरित्र चित्रण हर अख़बार के मुख्य पृष्ट की शोभा बड़ा रहे हैं |
                  आंध्र प्रदेश के महान राजनीतिज्ञ पुरोधा एन. टी. रामा राव और शिक्षिका लक्ष्मी पार्वतीके किस्से
पूर्व राज्य मंत्री चिन्मयानंद और चिदर्पिता के किस्से ,ये उस समय केहैं जब मिडिया इतना मुखर नहीं था |
और राजनीती भी मिडिया पर हाबी थी ,पाबंदी थी| अगर किसी अख़बार में छपी तो एक छोटे से कालम में
|आम जनता को पता ही नहीं चलता था और उस समय अख़बार भी हर जगह नही पहुच पते थे | जब से
मिडिया बलवती हुआ है इन के चरित्र की पोल खुल कर जनता के सामने आने लगी हैं |
      पूर्व राज्य पाल एन. डी. तिवारी कांड ,मधुमती कांड, ये भी नेताओं से जुढ़े हैं |और हल ही मैं उभर के आया
भवरी देवी कांड जिस मैं भी एक नेताजी का चरित्र उभर कर आया हैं |ये सभी हम लोगों के दुवारा ही चुन
कर ही भेजे गये है |
                                        क्याइन केसों की निष्पक्ष जाँच हो पायेगी ?क्या इनको भी आम जनकी तरह सजा
मिलपाएगी  |या सजा के नाम पर इनको मिलेगी पञ्च सितारा जेल जहाँ इन के एशों आराम की
सभी सुबिधायें उपलब्ध करा दी जाती हैं | इन्होने तो आपनी उम्र का भी लिहाज नहीं किया |
                 दोस्तों ये काम अगर आम युवा करता तो लोग शायद यही कहते ... सा ... करेक्टर ढीला
हैं | 

Sunday, January 1, 2012

"मात्रभाषा " 
================            दोस्तों नमस्कार ,नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .मित्रो हम सभी लोग अपनी -अपनी स्थाननिय भाषा का प्रयोग ही अपनी दैनिक दिन चर्या में करते हैं |और ये होना भी चाहिए ,जो प्रेम ,अपनत्व  ,जो भावना हम अपनी मात्र भाषा में व्यक्त कर सकतें है किसी अन्य भाषा में  पूर्ण रूप से नहीं कर सकते ,अगर किसी अन्य भाषा में कर भी दी तो उस में पूर्णता नहीं होती ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्य भाषा के शब्द आप को नहीं दे सकते ,जो आप व्यक्त करना चाहते है | इसी लिए कहते है कि मात्र भाषा भावना प्रधान होती है |
         मित्रों हमारा हसना ,रोना ,गाना सब कुछ हमारी मात्र भाषा में ही होता है और हमारे प्रियजन भी इसी भाषा को अच्छी तरह समझते है |
           अब मैं आप से पूछना चाहता हूँ ,कि क्या नवजात शिशु कि भी कोई भाषा होती है ? यह सबाल कुछ हैरान  करने बाला हो सकता है लेकिन एक नए अध्ययन में पाया गया कि बच्चे गर्भावस्था में ही अपनी मात्र भाषा को समझने लगते है | अरे आपने अभिमन्यु का नाम तो सुन ही रखा होगा ,ये तो महाभारत काल में ही सिद्ध होगया था |जर्मनी के वर्जबर्ग विश्वविध्यालय के शोधकर्ता के एक दल ने ६० नवजात बच्चों के रोने का विश्लेषण किया |मुख्य शोधकर्ता कैथलीन वर्मके ने बताया कि नवजात न केवल अलग अलग तरह से रोते है बल्कि उस तरह की आवाज भी निकालते हैं जो गर्भ में रहते हुए अंतिम तीन महीनों के दौरान उनके कानों तक  पहुचती हैं | कैथलीन ने बताया कि गर्भकाल के अंतिम समय में बच्चे अपनी मां की आवाजें सुनते है और अपने रोने में भी इसी तरीके की नकल करते है | दल ने विश्लेषण के दौरान तीन से पांच साल की आयु के ६० नवजातों  के रोने की आवाज सुनी |इन में से ३० फ्रेंच भाषी परिवारों से थे और ३० जर्मन भाषी परिवारों से थे |उन्होंने इन शिशुओं की मात्रभाषा के आधार पर उनके रोने के तरीकोंमें अंतर को स्पष्ट किया |जहाँ फ्रांसीसी नवजात को  ऊँची लय के साथ रोते सुना गया ,वहीं जर्मन शिशु नीची लय में रो रहे थे | वर्मके ने बताया कि यह पैटर्न दोनों भाषाओँ के बीच लक्षणात्मक अंतर जैसा ही हैं |
              देखा मित्रों अपनी मात्रभाषा तो हम मां के पेट से ही सीख कर आते है ,फिर भी उसे अपनाने में लज्जा  महसूस  करते है .....     ...... क्यूँ .....   ?