Friday, February 25, 2011

भरतीय राजनीती में भ्रष्टाचार :-
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एस बैंड पर पी. एम.ने भजपा को लपेटा ,मौका मिलते ही उलझे माननीय ,कलमाड़ी ने दिखाई आँख ...., और भी एसे अन्य समाचारों को समाचार पत्र के मुख्य प्रष्ट पर देख कर एसा प्रतीत होता है कि राजनीति राजनीति न रहकर  भरष्टाचार निति होगयी है | आज राजनीति का ढर्रा इतना बिगड़  गया है कि राजनीति के विकृत रूप के कारण यह पता लगाना कठिन हो रहा है कि भारत का राजमार्ग ही भ्रष्ट है या भ्रष्टाचार ही राजमार्ग मे घुस गया है | राजनीति रिवाज ,मर्यादा और सिद्धांत नाम की कोई चीज भारत में कही दिखाई नही देती |तत्कालीन नेता त्याग ,बलिदान ,देश -प्रेम और देश भक्ति जैसे गुणों से ओत -प्रोत होते थे |इन्हीं गुणों  के कारण अंग्रेज सरकार को भारत छोड़ना पड़ा | उस समय नेता देश को समर्पित होते थे अब पेट के लिए समर्पित है | अब ऊँचे से ऊँचा  पदासीन व्यक्ति भी कई करोड़ की सम्पत्ति का भंडार संचित कर रहा है |घोटालोंमें लिप्त होकर अपनी स्वयं की, अपनी पार्टी की ,तथा देश की छवि धूमिल कर रहें हैं |देश की गरीब जनता के लिए सुख सुविधा के प्रवचन तो अब केवल स्टेज और अख़बारों को ही सुशोभित करते हैं |
       किसी दल या पार्टी का गठन मोटे तौर पर किसी सिद्धांत के आधार पर ही होता है |उस सिद्धांत में आस्था और निष्ठा रखनेवाले लोग ही उस दल में सम्मिलित होते हैं |प्रत्येक दल का लक्ष्य सत्ता की प्राप्ति होता है ,आज तक यही होता आया  है कि विपक्ष आपनी सारी शक्ति सत्ताधारी दल को गाली देने ,बदनाम करने और किसी न किसी तरह सत्ता हासि लकरने  में लगा रहता है|आज लक्ष्य है सत्ता में जाना और सत्ता सुख ,सुविधा प्राप्त कर अपने कुल तथा रिश्तेदारों को लाभ पहुचानाही है |
         आज राजनैतिक दलों के परस्पर सम्बन्ध इतने कटु हो गये हैकि देश कि बड़ी से बड़ी समस्या पर भी आपस में विचार विमर्श करने के बजाये मिडिया के माध्यम से आरोप -प्रत्यारोप लगाते रहते हैं |उनके मन में यही धारणा घर किये रहती है कि विपक्ष कभी अच्छा कर ही नही सकता | जब विभन्न देश परस्पर मिल कर हित की बात कर सकते हैं तो विभिन्न दल परस्पर मिल कर राष्ट्र हित की बात क्यूँ नही कर सकते ? इस का कारण स्पष्ट है कि उन दलों और राजनेताओं में देश -भक्ति की भावना का आभाव है |राजनेताओं के लिए कोई सर्वमान्य आचार सहिंता नही है |जिसके आभाव में ही आज के नेता मनस्विता के अनुरूप आचरण करते दिखाई नही देते |
            देश में भ्रष्टाचार अब इतना सर्वव्यापी हो गया है ,कि किसी एक व्यक्ति ,व्यवसाय तथा संस्था कि ओर ऊँगली उठाने कि आवश्यकता नहीं |अब कोई भी स्तर ऐसा नही बचा जहाँ भ्रष्टाचार न हो | पहले केवल व्यापारी  को चोर और भ्रष्ट माना जाता था ,बाद में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी इस श्रेणी में गिने जाने लगे और अब तो आप देखते हैं कि इस व्यवसाय में प्रशासक और शासक भी शामिल हो गये है |अत: भ्रष्टाचार और अपराध अब अपराध नहीं रह गया है | हमारे जीवन का अंग बनगया है |अब आवश्यकता इस बात की है कि हम राजनैतिक संस्कार और आचार को बदलें |आपको अपनी सोच भी बदलनी हिगी |जैसे सेवा नि वृति का नियम होता है वही नियम राजनीति में भी लागू होना चाहिए | एक निश्चित आयु के बाद जैसे सभी सरकारी नौकर सेवा निवृत होतें हैं वैसे ही मंत्रियों और विधायको को भी सेवा निवृत किया जाये |
             यदि ऐसा नियम होता है तो बहुत कुछ भ्रष्टाचार राजनीति से कम होता नजर आएगा | भारत कि राजनीति में ऐसा नही होता |हर दल में एक विधायी पक्ष और दूसरा संगठन पक्ष होता है |जो नेता एक बार विधायी पक्ष मे चला जाता है वही सरकार कि कुर्सी से चिपका रहना चाहयता है ,फिर वह कुर्सी को नही छोड़ता| हमारी राजनैतिक व्यवस्था में एसे अनेक दोष है , जिनके कारण भ्रष्टाचार पनप रहा है |
              जब राजनीति में भ्रष्टाचार है तो जीवन के अन्य पक्ष भी अछूते नही रह सकते |भ्रष्टाचार महादैत्य होता है| हम नहीं कह सकते कि यह महादैत्य न जाने कब किस को निगल जाये |इसलिए सारे देश को उस संस्कार  और तंत्र के विरुद्ध खड़े हो जाना चाहिए ,जिस के कारण भ्रष्टाचार पैदा होता है बढ़ता है |
                                                  || वन्दे -मातरम् ||   
 

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