Friday, March 2, 2012

आओ ! कचरा करें :-

आओ ! कचरा करें :-
============================
दोस्तों आदमी और कचरे का संबंध काफी अटूट है ।आदमी है तो कचरा होना लाजमी है । मच्छर मलेरिया फैलाता है ,मक्खी हैजा ,चूहा प्लेग फैलाता है ,तो आदमी कचरा ।बल्कि कहना चाहिए कि मनुष्य तो इन से भी दो कदम आगे है ।कचरा करना तो आदमी कि जन्म जात प्रवर्ति है ।हिमालय कि चोटियाँ इस बात कि साक्षी है ।जब तक वे आदमी की पहुच से दूर रहीं ,स्वच्छ बनी रहीं ।परन्तु जब से आदमी को पर्वतारोहण का शौक चर्राया तब से इन को भी नहीं छोड़ा ।फिर कचरा भी कैसा -कैसा ? प्लास्टिक के डिब्बे ,पालीथीन की थैलियाँ , इत्यादि जिनको प्रकर्ति भी  ठिकाने नहीं लगा सकती ।
      यह कितनी अजीब बात है कि जो व्यक्ति जितना अधिक साफ -सफाई पसंद है वह उतना ही अधिक गंदगी फैलाता है ।रोज -रोज नहाने वाला ,कभी कभार नहाने वाले कि अपेक्षा ज्यादा पानी गन्दा करता है ।नहाने -धोने के लिए साबुन ,शैम्पू और डिटरजेंट का उपयोग करने वाला सादा पानी से नहाने -धोने वाले के मुकाबले पानी को ज्यादा ख़राब तरीके से गन्दा करता है । प्रसाधन सामग्री का प्रचुर प्रयोग पर्याप्त प्रदुषण पैदा करता है । इन वस्तुओं के निर्माण के समय फैक्ट्रियां भी गंदे अवशिष्ट फैंकती है । फिर इन की पैकिंग में लगने वाला कागज ,गत्ता ,पन्नी  आदि भी तो अंतत: कचरा बनता है ।
        आज का युग ओध्योगीकरण  का है ,जिसका मूर्त रूप है निरंतर धुंआ उगलती मिलें, कारखाने ।जहां जितने अधिक कारखाने ,वह देश उतना ही उन्नत ।इसका परिणाम तो आप जानते ही है - अधिक कचरा और अधिक प्रदूषण ।इसका अर्थ यह हुआ कि कचरा प्रगति का प्रतीक और समुन्नत होने का लक्षण है ।मेरे विचार से किसी देश कि उन्नति का स्तर इस बात से आंका जाना चाहिए कि वहां प्रति व्यक्ति प्रतिदिन / प्रतिवर्ष कितना कचरा उत्पन्न करता है ।
          एक बात और ।सभ्य आदमी अपने कचरे को अपने से दूर दूसरों के इलाके में फैकता है ।जो जटिल गंवार है , वे गंदगी के बीच रहते है ,घर का कचरा घर के सामने ही डाल देते है ।परन्तु जो अपेक्षाकृत सभ्य हैं , वे अपना कचरा पड़ोसी के दरवाजे या दो -चार मकान आगे या सार्वजनिक स्थान पर डाल देते हैं ।आबादी बढने से हालात यह है कि आप कचरा कहीं भी फैकें ,वहां किसी न किसी का दरवाजा तो होगा ही ।और फिर शहर भी इतने बड़े होगये हैं कि म्युनिसिपल्टी वालों तक को उससे बाहर जा कर कचरा फैकना एक समस्या हैं ।फिर अबतो शहर के बाहर भी निर्जन स्थान कहाँ ?
           वास्तव में जो जितना सभ्य है ,वो उतना ही खतरनाक कचरा करता है ।विकसित देश अपने परमाणु परीक्षण महासागर में करते हैं ,इससे वे खुद तो रेडियो धर्मी कचरे से बचे रहते हैं ,महासागर वाले द्वीप ,और जीव -जंतु प्रभावित होते हैं ,तो हों ।उन्होंने अंतरिक्ष को भी नहीं छोड़ा ,चन्द्रमा को भी नहीं और तो और अब मंगल के बारे में प्रयास कर रहे हैं ।सोचने वाली  बात ये है कि जो रसायन ,मशीनरी ,दवाइयां और हथियार उनके यहाँ प्रतिबंधित हैं कचरा हैं उनको वे हमारे जैसे देशों को बड़े एहसान से निर्यात कर रहे हैं और हम उनके इस कचरे के लिए लार टपका रहे हैं ।
            इस भौतिक कचरे के अलावा एक अन्य प्रकार का अमूर्त कचरा भी होता है ।जिसकी आजकल बहुत चर्चा है ।यह कचरा मन -मस्तिष्क को प्रभावित करता है । पुरातनपंथी इसे सांस्क्रतिक प्रदुषण कि संज्ञा देते हैं । उनके अनुसार यह प्रदूषण समाज में अनाचार -और भ्रष्टाचार जैसी बीमारियां फैलाता है ।किन्तु आधुनिक उदारमान सज्जन इसे बुरा नहीं समझते बल्कि अन्य कचरे की भांति इसे भी उन्नति का रूप समझते हैं ।
               उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कचरे का उन्नति से सीधा संबंध है , तो उन्नतिशील कहलाने के लिए आओ हम सब मिलकर खूब कचरा करें ।
                                    
                                     ।।बुरा न मनो होली है ,मान भी जाओ तो ..... हुड्दंगा है ।।        
    

No comments:

Post a Comment