Sunday, November 21, 2010

sabarmati ka sant

दोस्तों नमस्कार .आज मै "साम्प्रदायिक एकता" के विषय मै जो बापू ने कहा था या लिखा था वो आप को बताता हूँ :_
"हिन्दू, मुसलमान ,सिख ,इसाई, पारसी, आदि को अपने मतभेद हिंसा का आश्रय लेकर और लड़ाई-झगडे करके नहीं निपटने चाहिए .
हिन्दू और मुस्लमान मुह से तो कहते है कि धर्म मै जबरजस्ती का कोई स्थान नही है | लेकिन यदि हिन्दू गाय को बचाने के लिये मुस्लमान कि करे , तो यह जबरजस्ती के सिवाय और क्या है?
यह तो मुस्लमान को बलात हिन्दू बनाने जैसी ही बात है | और इसी तरहा यदि मुसलमान जोर-जबरजस्ती से हिन्दुओ को मस्जिदों के सामने बाजा बजाने से रोकने कि कोशिश करते हैं , तो यह भी जबरदस्ती के सिवा और क्या? धर्म तो इस बात मै है कि आसपास चाहे जितना शोरगुल होता
रहे , फिर भी हम अपनी प्रार्थना मै तल्लीन रहै| यदि हम एक दुसरे को अपनी धार्मिक इछाओ का सम्मान करने के लिए बाध्य कि कोशिश करते रहे , तो भावी पीड़ियाँ हमे धर्म के तत्व से बेखबर जंगली ही समझेगी |
अब हिन्दू- मुसलमानों के झगड़ो के दो न्यायी कारणों का क्या इलाज हो सकता है, इसकी जाँच करें |
                                  पहले गोवध को लीजिये |गोरक्छा को मै हिन्दू धर्म का प्रधान अंग मानता हू| गोरक्छा का प्रारम्भ तो हमी को करना है | एसी हालत मै एकमात्र सच्चा और शोभास्पद उपाय यही है कि मुसलमानों के दिल हम जित ले और गाय का बचाव करना उनकी शराफत पर छोड़ दें |मुसलमानों के होने वाले गोवध को वे रोक न सके , तो इसमैं उनके मत्थे पाप नही चढ़ता |लेकिन जब वे गाय को बचाने के लिये मुसलमानों के साथ झगडा करने लगते है, तब वे जरुर भरी पाप करते है|
मसजिदों के सामने बाजे बजने के सबाल पर --अब तो मंदिरों के भीतर होनेवाली आरती का भी विरोध किया जाता है -- मैंने गम्भीरता पुरबक सोचा है| जिस तरहा हिन्दू गोबध से दुखी है उसी तरहा मुसलमानों को मसजिदों के सामने बाजा बजने पर बुरा लगता है |लेकिन जिस तरहा हिन्दू मुसलमानों को गोवध न करने के लिए बाध्य नही कर सकते , उसी तरहा मुसलमान भी हिन्दुओ को डरा-धमकाकर बाजा या आरती बंद करने के लिये बाध्य नही कर सकते | उन्हे हिन्दुओ कि सद-इक्झा का विशबास करना चाहिए | हिन्दू के नाते मैं हिन्दुओ को यह सलाह जरुर दूंगा कि वे सौदे बाज़ी कि भावना रखे बिना अपने मुसलमान पड़ोसियों के भावो को समझे और जहाँ सम्भव हो उनका ख्याल रखै|
       मुझे इस बात का पूरा निश्चय है कि यदि नेता न लड़ना चाहे तो जनता को लड़ना पसंद नहीं है| इसलिए यदि नेता लोग इस बात पर राजी हो जाये कि दूसरे सभ्य देशो कि तरहा हमारे देश मै भी आपसी लड़ाई-झगडे का सार्वजानिक  जीवन से पूरा उछेध कर दिया जाना चाहिए और वे जंगलीपन और अधार्मिकता के चिन्ह मानेजाने चाहिए , तो मुझे इसमे कोई संधेह नहीं कि आम जनता शीघ्र ही उनका अनुकरण करेगी |
         जब ब्रिटिश शासन नही था और अंग्रेज लोग  यहाँ दिखाई नही पड़ते थे ,तब क्या हिन्दू मुसलमान और सिख हमेशा लड़ते रहते थे? हिन्दू इतिहासकारों और मुसलमान इतिहासकारों ने उदाहरण देकर यह सिद्ध क्या है कि उस समय मै हम बहूत हद तक हिल-मिलकर और शांति पुर्वक ही रहै ते थे | और गाँव मै तो हिन्दू -मुसलमान आज भी नही लड़ते | उन दिनों वे बिलकुल ही नही लड़ते थे |
                                       सम्पादित संकलन साभार  "यंग-इंडिया,२४-१२-३१" से
                          नमस्कार , जय हिंद |    

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