Wednesday, November 17, 2010

sabar mati ka sant

दोस्तों नमस्कार, दो दिन से गायब था इस  लिए माफ़ी चाहता हूँ.आज सुबह समाचारपत्र  देखा तो सबसे पहले 'राजा के स्पेक्ट्रुम घोटाला' निग़ाह मै आया .महसूस हुआ  कि राजा अपनी गलती स्वीकार नहीं कर रहें हैं .बापू ने १९ फरबरी १९३३ मै 'हिंदी नवजीवन " मै लिखा था - "मै अगर किसी सदगुण का दाबा करता हूँ तो वह मेरी सत्यनिष्ठा और अहिन्साप्रयानता ही है.मै अपने मे किसी दैवीय शक्ति होने का दावा नहीं करता . और न मुझे वैसी शक्ति कि जरूरत ही है. मेरा शरीर वैसे ही नश्वर है जैसा कि किसी कमजोर से कमजोर मानव बन्धु का है और मेरे हाथ से भी वे सब गलतियाँ होने कि सम्भावना है जो कि उसके से हो सकती है . अपनी गलती को स्वीकार करना बड़ी अच्छी बात है . वह एक झाड़ू का कम करता है . जिस प्रकार झाड़ू गंदगी को हटा कर जमीन को पहले से भी अधिक साफ कर देती है ,उसी प्रकार अपनी गलती को स्वीकार करने से हृदय  हल्का और साफ जाता है.
अपनी गलती स्वीकार करके मै अपने को अधिक बलवान अनुभव करता हूँ . इस तरह पीछे लौटने से
हमारे कार्य कि उन्नति होगी . सीधी राह छोड़ने का आग्रह रखकर मनुष्य अपने उद्दिष्ट स्थान को कभी नही पहुच सकता " .
देखा आपने .....इस लिये ही तो उनको "बापू" कहते है.अच्छा शुभ-दिन चलते है फिर मिलेंगे .....

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