Friday, September 5, 2014

दिल की किताब :-

दिल की किताब :-
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" आप भी क्या सोच रहे होंगे कि  मैंने कैसा शीर्षक लिया हैं ।जी हाँ एक ही शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं, और समझ ने वाले अपने हिसाब से समझते है । यहाँ मैं एक ऐसी किताब के बारे में  बता रहा हूँ , जिसको इस भूलोक के किसी लेखक ने नहीं लिखा है । इसे पड़ने के लिए किसी भाषा ज्ञान की जरूरत नहीं । एक अनपढ़ भी इसे पड़  सकता है । बिना आखों बाला भी पढ़ सकता है । इसका लेखक संसार का पालन हार , सृष्टि का रचियता है । 
       इसे  अगर  युवा पढ़ेगा तो उसे भी आनंद की अनुभूति होगी , अगर मध्य वय पढ़ेंगे  तो असीम संतोष की प्राप्ति होगी , और वृद्ध पढ़ेंगे  तो असीम आनंद, संतोष ,और सुख की प्राप्ति होगी । हरेक के  अपने- अपने अर्थ होंगे , अलग -अलग अनु -भूतियां होंगी । इसे "हृदय की किताब " भी कह सकते हैं । 
         
             इसमें लिखा है - सबसे पहले अपनी आँखे बंद कर पहचानो तुम कौन  हो ।
                                  - अपने अंदर के जीवन को महसूस करो । 
                                  - अपने अंदर के आनन्द को खोजो , सच्चा आनन्द , शारीरिक आनन्द  से इतर । 
                                  - अपने अंन्दर के करिश्माई शक्तियो को खोज निकालने का  मार्ग । 
                                  - एक शब्द "प्रेम " कितने अर्थ है इसके ,समझो ,पहचानो , करो ,बांटो ।
                                  - तुम्हरे अंदर ही तुम्हरी दिव्यता है। 
                                  - तुम्हारा गुरु तुम्हारा हृदय ही है इसकी आवाज को कभी अनसुना न करो , फिर
                                     देखो जीवन के हर क्षेत्र में  सफलता तुम्हरे  साथ होगी । 
 
किसी पुस्तक के पन्ने  पलटते रहो तो एक -एक करके सारे  पन्ने पलट जायेंगे , इन्हें फिर बापस पलट  सकते है ।  परन्तु हृदय की किताब के पन्ने बापस नहीं पलटे जासकते । इसे पढ़ना  है तो दिल की भाषा सीखो । जिस दिन हृदय की भाषा समझ आने लगेगी , उस दिन ये भी समझ में आने लगेगा कि  जीवन कितना अनमोल है । सौभाग्य है कि हमें ये जीवन मिला । इस दिल ,हृदय की किताब को अपना गुरु बनाओ ,मार्गदर्शक  बनाओ । हृदय से निकला हर भाव सत्य है , परमात्मा के प्रेम की भाषा है , उसका आदेश है , उसे बस समझना है । ये तभी संभव  होगा जब हम इस किताब को पढ़ना सीख  जाएगें ।   
                               

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