Sunday, December 19, 2010

SABRMATI KA SANT

गांधीवाद
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                      दोस्तों ये शब्द आप ने नजाने कितनीबार सुना होगा ,इस शब्द की दुहाई देते भी मिले होंगे.पर अधिकतर लोग इस शब्द का अर्थ ही नहीं समझते ,क्या है गांधीवाद ? ये कोई धर्म नही ,कोई सम्प्रदाय नही .ये बापू कि विचारधारा है ये बापू के वो विचार थे जिनके कारण टैगौर उनको "महात्मा" कहते थे |उनके साथ जो भी जुड़ा उसने आपने आपको गाँधीवादी कहना शुरू करदिया |कांग्रेसियों ने तो इसे आपना धर्म ही बना लिया आज भी इस पार्टी के लोग इस शब्द  का  भर-पूर प्रयोग करते है ,परन्तु इन लोगो से बापू के विषय मै अगर कुछ पूछ लिया जाये तो ये बापू के दो-चार विचार भी नही बतला सकते |जब बापू को इस दुष्प्रचार का पता लगा तो उन्होंने कई बार इस विषय मै लिखा भी .....
                 " ""गांधीवाद" नाम की कोई वास्तु है ही नही ;और न मैं अपने पीछे कोई सम्प्रदाय छोड़ जाना चाहयता हूँ |मेरा यह दावा नहीं है की मैंने किसी नए सिद्धांतका अविष्कार किया है  |मैंने तो  जो शाश्वत सत्य है उनको अपने नित्य के जीवन और प्रतिदिन के प्रश्नों पर अपने ढंग से सिर्फ घटाने का ही प्रयतनकिया है |
                  अत: मनुस्म्रती के जैसी कोई स्मरति  यानि संहिता मेरे छोड़ जाने का सवाल ही नही है | उन महान विधि  निर्माता -स्मर्तिकार के और मेरे बीच कोई तुलना  हो ही नही सकती | जो मत मैंने कायम किये है और जिन निर्णयों पर मै पहुचा हूँ ; वे भी अंतिम नही है | हो सकता है , मै कल ही उन्हे बदल दूँ |मुझे दुनिया को कोई नई चीज नही सिखानी है |  सत्य और अहिंसा अनादी काल से चले आए है | मैंने तो यथाशक्ति विशाल से विशाल पैमाने पर इन दोनों से अपने जीवन मै प्रयोग भर किए है |एसा करते हुए कभी-कभी मैंने गलतिया भी की है और अपनी उन गलतियों से मैंने सिखा भी है | इस प्रकार जीवन और उसकी समस्याओं ने मेरे लिए सत्य और अहिंसा के पालन मै प्रयोगों का रूप ले लिया है |"
                                            शायद  अब आप समझ गये होंगे की गाँधीवाद क्या है |इन्ही विचारो को आत्मसात  करने वाले एक और शक्श थे जो निरापद गाँधीवादी थे वो थे "सीमांत गाँधी "|
                                                             साभार संकलित :-हरिजन सेवक ,२८ मार्च १९३६ |
                                         ||    वन्दे -मातरम् | | 

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