अजीब उलझन :-
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वाकयी ये एक अजीब उलझन हैं कि ,मन में आये हुए विचारों को कहाँ लिपि बद्ध किया जाये या सरल भाषा में कहूँ कि लिखा जाये । कागज पर लिंखूं तो लोग कहते हैं कि "यार किस दुनिया में रहते हो .... ब्लॉग लिखते हो तो उस पर लिखो न " । कहते तो वो लोग भी ठीक रहे हैं…पहले कागज पर लिखूं फिर ब्लॉग पर टाईप करूँ … ये भी दोहरा काम हैं … सिधे क्यों न लिखा जाये ।
लीजिये साहब हमने सोच लिया आज शहर जाकर …… (मतलब .... अरे भाई हम रहते तो अपने गॉव में हैं जँहा इंटर नेट की सुभिधा नहीं हैं , तो कैसे लिखेंगे … ) लिखेंगें । कंप्यूटर ऑन किया …… ब्लॉग बाली साईट खोली … और अपने ब्लॉग पर साइन इन किया … लिखने बाला पृष्ठ खोला .... कुर्सी पर सीधे बैठे …… सीधे का मतलब कमर को तक्क सीधा कर के वैठना। … अरे भैया हमने एक अख़बार में पड़ा था कि जो लोग कुर्सी पर कमर कमान बना कर आराम …… मतबल काम करते हैं ,वो बुढ़ापे में बहुत पछताते हैं। । कमर की हड्डी टेडी हो जाती है .| डाक्टर लोग बहुत पैसा एठते हैं .... दुनिया भर की लाल पिली दवाइयाँ खानी पड़ती हैं और एक दो साल बाद कहते हैं कि आप को तो" इस्पान्ड लाईटिस " हो गया हैं । फलां फलां …… , हड्डियों की कसरत कराने वाले डॉक्टर से मिलो ....... वो भी पैसे ऐठेगा …… फिर कोई बाबा रामदेव की शरण में जाने को कहेगा …… अरे इत्ता झेलने से पहले ही सुधर जाएँ तो का जाता है ,कमर तो अपनी हैं .......इस लिए भैया हम कमर तक्क कर के वैठ गए ।
का कह रहे हो , हमारी भाषा को क्या हुआ , अरे भाई हम कितने ही पढ़ लिख गए हो ,शहर में रहलिये हो पर मातृ भाषा का गवई अन्दाज थोड़े ही भूल जायेंगे । जाने अनजाने ये तो होगा ही …… अरे इसी भाषा से ही तो हम जिंदगी का क ,ख, ग , सीखे हैं । ये भाषा हमारे खून में हैं। …… ये हमको हमारे होने का एहसास कराती हैं । इसी से हमारे अपने ,अपने बने हुए हैं । जब हम अपने बड़ों से सुबह सुबह राम राम करते है तो उन का प्यार भरा स्नेहिल हाथ हमारे सर पर होता है , आह मत पूंछो कितने आनन्द और सुख की अनुभूति होती है … जब राम राम के बाद ताई कहती है …… अरे लल्ला कब आये , वैठो , चाह पीओ ,… कैसे हो ,बाल गोपाल कैसे हैं । बस जीवन जिवंत हो उठता हैं ……… इस स्नेह से इक नई ऊर्जा का संचरण हो जाता है इस देह में । क्या ये जादू नमस्ते , या गुड मॉर्निग में हैं । एक सीधी सी औपचारिकता ....... और सीधे रास्ते …… न अपनी ख़ुशी का कोई जिक्र और न दूसरे के गम से कोई वास्ता । वही भाग दौड़ से जगती सुबह और भागते भागते ढलती शाम । इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में अगर दो चार पल सकून के मिलते हैं तो इसी भाषा के अपने पन की वजह से,वरना किस को किस की पड़ी । मेरे मित्तरों भाषा से ही जज्वात बयां होते हैं। ……नहीं तो हम जानवरों के दुःख दर्द के भी साझेदार न होते ।
अरे छोडो ……। कहाँ से कहाँ आ गए ....... बात कर रहे थे अपने लिखने की , सीधे तक्क वैठ गए , उंगलिुओं को दो चार बार चटकाया और अब तैयार लिखने को …… उंगलिया क़ी -बोर्ड पर रखी ………। ………………अरे धत्त्तेरेकी ....... का लिखने वैठे थे , का सोच के आये थे …… भूल गए ना । बहुत अच्छा सोचके आये थे , कभी कोई काम वाला ,किसी ने आवाज दे ली ,और तो और आप ने भाषा के चक्कर में हमको फसा दिया । लो करलो बात। .... सब भूल गए ,बहुत मन से सोच के आये थे आज तो यारों की बात मान ब्लॉक पर ही लिखेंगे .... लिख लिया ।
बहुत उलझन है भाई जभी तो हम कहते हैं कि अपनी तो कागज और कलम ही ठीक हैं जब मन में विचार आया झट लिख डाला …… अरे न जाने दूसरा विचार पहले को हटा खुद घुसड़ जाये ....... जैसे हमारे साथ अभी हुआ , लिखने कुछ आये थे और लिख क्या गए । हाँ बताये देते हैं ,अब हम से मत कहना कि सीधे ब्लॉक पर लिखो , उलझा दिये ना । जबहि हम कहते हैं …………।
अजीब उलझन हैं ।
राम -राम भाइयो कल फिर सोच के आयेँगे ।
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