"मात्रभाषा "
================ दोस्तों नमस्कार ,नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .मित्रो हम सभी लोग अपनी -अपनी स्थाननिय भाषा का प्रयोग ही अपनी दैनिक दिन चर्या में करते हैं |और ये होना भी चाहिए ,जो प्रेम ,अपनत्व ,जो भावना हम अपनी मात्र भाषा में व्यक्त कर सकतें है किसी अन्य भाषा में पूर्ण रूप से नहीं कर सकते ,अगर किसी अन्य भाषा में कर भी दी तो उस में पूर्णता नहीं होती ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्य भाषा के शब्द आप को नहीं दे सकते ,जो आप व्यक्त करना चाहते है | इसी लिए कहते है कि मात्र भाषा भावना प्रधान होती है |
मित्रों हमारा हसना ,रोना ,गाना सब कुछ हमारी मात्र भाषा में ही होता है और हमारे प्रियजन भी इसी भाषा को अच्छी तरह समझते है |
अब मैं आप से पूछना चाहता हूँ ,कि क्या नवजात शिशु कि भी कोई भाषा होती है ? यह सबाल कुछ हैरान करने बाला हो सकता है लेकिन एक नए अध्ययन में पाया गया कि बच्चे गर्भावस्था में ही अपनी मात्र भाषा को समझने लगते है | अरे आपने अभिमन्यु का नाम तो सुन ही रखा होगा ,ये तो महाभारत काल में ही सिद्ध होगया था |जर्मनी के वर्जबर्ग विश्वविध्यालय के शोधकर्ता के एक दल ने ६० नवजात बच्चों के रोने का विश्लेषण किया |मुख्य शोधकर्ता कैथलीन वर्मके ने बताया कि नवजात न केवल अलग अलग तरह से रोते है बल्कि उस तरह की आवाज भी निकालते हैं जो गर्भ में रहते हुए अंतिम तीन महीनों के दौरान उनके कानों तक पहुचती हैं | कैथलीन ने बताया कि गर्भकाल के अंतिम समय में बच्चे अपनी मां की आवाजें सुनते है और अपने रोने में भी इसी तरीके की नकल करते है | दल ने विश्लेषण के दौरान तीन से पांच साल की आयु के ६० नवजातों के रोने की आवाज सुनी |इन में से ३० फ्रेंच भाषी परिवारों से थे और ३० जर्मन भाषी परिवारों से थे |उन्होंने इन शिशुओं की मात्रभाषा के आधार पर उनके रोने के तरीकोंमें अंतर को स्पष्ट किया |जहाँ फ्रांसीसी नवजात को ऊँची लय के साथ रोते सुना गया ,वहीं जर्मन शिशु नीची लय में रो रहे थे | वर्मके ने बताया कि यह पैटर्न दोनों भाषाओँ के बीच लक्षणात्मक अंतर जैसा ही हैं |
देखा मित्रों अपनी मात्रभाषा तो हम मां के पेट से ही सीख कर आते है ,फिर भी उसे अपनाने में लज्जा महसूस करते है ..... ...... क्यूँ ..... ?
================ दोस्तों नमस्कार ,नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .मित्रो हम सभी लोग अपनी -अपनी स्थाननिय भाषा का प्रयोग ही अपनी दैनिक दिन चर्या में करते हैं |और ये होना भी चाहिए ,जो प्रेम ,अपनत्व ,जो भावना हम अपनी मात्र भाषा में व्यक्त कर सकतें है किसी अन्य भाषा में पूर्ण रूप से नहीं कर सकते ,अगर किसी अन्य भाषा में कर भी दी तो उस में पूर्णता नहीं होती ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्य भाषा के शब्द आप को नहीं दे सकते ,जो आप व्यक्त करना चाहते है | इसी लिए कहते है कि मात्र भाषा भावना प्रधान होती है |
मित्रों हमारा हसना ,रोना ,गाना सब कुछ हमारी मात्र भाषा में ही होता है और हमारे प्रियजन भी इसी भाषा को अच्छी तरह समझते है |
अब मैं आप से पूछना चाहता हूँ ,कि क्या नवजात शिशु कि भी कोई भाषा होती है ? यह सबाल कुछ हैरान करने बाला हो सकता है लेकिन एक नए अध्ययन में पाया गया कि बच्चे गर्भावस्था में ही अपनी मात्र भाषा को समझने लगते है | अरे आपने अभिमन्यु का नाम तो सुन ही रखा होगा ,ये तो महाभारत काल में ही सिद्ध होगया था |जर्मनी के वर्जबर्ग विश्वविध्यालय के शोधकर्ता के एक दल ने ६० नवजात बच्चों के रोने का विश्लेषण किया |मुख्य शोधकर्ता कैथलीन वर्मके ने बताया कि नवजात न केवल अलग अलग तरह से रोते है बल्कि उस तरह की आवाज भी निकालते हैं जो गर्भ में रहते हुए अंतिम तीन महीनों के दौरान उनके कानों तक पहुचती हैं | कैथलीन ने बताया कि गर्भकाल के अंतिम समय में बच्चे अपनी मां की आवाजें सुनते है और अपने रोने में भी इसी तरीके की नकल करते है | दल ने विश्लेषण के दौरान तीन से पांच साल की आयु के ६० नवजातों के रोने की आवाज सुनी |इन में से ३० फ्रेंच भाषी परिवारों से थे और ३० जर्मन भाषी परिवारों से थे |उन्होंने इन शिशुओं की मात्रभाषा के आधार पर उनके रोने के तरीकोंमें अंतर को स्पष्ट किया |जहाँ फ्रांसीसी नवजात को ऊँची लय के साथ रोते सुना गया ,वहीं जर्मन शिशु नीची लय में रो रहे थे | वर्मके ने बताया कि यह पैटर्न दोनों भाषाओँ के बीच लक्षणात्मक अंतर जैसा ही हैं |
देखा मित्रों अपनी मात्रभाषा तो हम मां के पेट से ही सीख कर आते है ,फिर भी उसे अपनाने में लज्जा महसूस करते है ..... ...... क्यूँ ..... ?
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