Monday, January 30, 2012
Saturday, January 14, 2012
BARF,DHOOP,OR AANKHEN
बर्फ,धूप,और आँखें :-
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नमस्कार दोस्तों ,बर्फ की चादर ओढ़े पहाड़ों पर सूरज भी ईद के चाँद जैसा होता है |मुश्किल से नजर आता है , और जब इसका दीदार होता है तो सभी इसको देखने के लिए निकल पड़ते है |बर्फ के पहाड़ की चोटीसे निकलता हुआ सूरज ..... बड़ा ही मनोहारी द्रश्य होता है लेकिन दोस्तों बर्फीले इलाके में धूपखाना अक्लमंदी नहीं |इस से आँखों का नूर छिन सकता है |एक जापानी रिसर्च के मुताबिक बर्फीले इलाके में अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर समुन्द्र तटीय इलाके से ढाई गुना ज्यादा हानिकारक है |
कनाजावा मेडिकल युनिवर्सटी के वैज्ञानिक उत्तरी जापान स्तिथ इशिकावा प्रिफेक्चर में ताजा गिरी बर्फ पर प्रकाश का परावर्तन परखने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे |इस के लिए उन्होंने यहाँ पर बसे कृतिम तट में अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर भी आंका | शोधकर्ताओं के अनुसार तटीय क्षेत्र में आँखें रोजाना २६० किलोजूल प्रति वर्ग मीटर अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में रहती हैं |जबकि बर्फीले इलाके में यह आकड़ा ६५८ किलोजूल / वर्ग मीटर है |शोधकर्ताओं की मानें तो अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा से ज्यादा आखों के लिए खतरनाक हैं | बर्फीले इलाके में इनसे बचना है तो सनग्लास से बेहतर होगा किआप गागल्स लगायें |
इन जगहों पर धूप में ज्यादा देर तक रहने से स्नो ब्लाइंडनेस ,मोतियाबिंद , और आँखों में जलन खतरा बड़ जाता है |समुंद्री तट पर अल्ट्रावायलेट किरणों का परावर्तन अमूमन १० से २५ फीसदी के बीचहोता है | वहीं बर्फीले इलाके में यह ८५ फीसदी है |३०० मीटरऊंचाई बढने पर यह स्तर ४ फीसदी तक बड़ जाता है |
देखा दोस्तों हम तो यही कहेंगे कि सुन्दरता को जी भर के निहारिये पर जरा एतिहात से ....|
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नमस्कार दोस्तों ,बर्फ की चादर ओढ़े पहाड़ों पर सूरज भी ईद के चाँद जैसा होता है |मुश्किल से नजर आता है , और जब इसका दीदार होता है तो सभी इसको देखने के लिए निकल पड़ते है |बर्फ के पहाड़ की चोटीसे निकलता हुआ सूरज ..... बड़ा ही मनोहारी द्रश्य होता है लेकिन दोस्तों बर्फीले इलाके में धूपखाना अक्लमंदी नहीं |इस से आँखों का नूर छिन सकता है |एक जापानी रिसर्च के मुताबिक बर्फीले इलाके में अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर समुन्द्र तटीय इलाके से ढाई गुना ज्यादा हानिकारक है |
कनाजावा मेडिकल युनिवर्सटी के वैज्ञानिक उत्तरी जापान स्तिथ इशिकावा प्रिफेक्चर में ताजा गिरी बर्फ पर प्रकाश का परावर्तन परखने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे |इस के लिए उन्होंने यहाँ पर बसे कृतिम तट में अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर भी आंका | शोधकर्ताओं के अनुसार तटीय क्षेत्र में आँखें रोजाना २६० किलोजूल प्रति वर्ग मीटर अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में रहती हैं |जबकि बर्फीले इलाके में यह आकड़ा ६५८ किलोजूल / वर्ग मीटर है |शोधकर्ताओं की मानें तो अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा से ज्यादा आखों के लिए खतरनाक हैं | बर्फीले इलाके में इनसे बचना है तो सनग्लास से बेहतर होगा किआप गागल्स लगायें |
इन जगहों पर धूप में ज्यादा देर तक रहने से स्नो ब्लाइंडनेस ,मोतियाबिंद , और आँखों में जलन खतरा बड़ जाता है |समुंद्री तट पर अल्ट्रावायलेट किरणों का परावर्तन अमूमन १० से २५ फीसदी के बीचहोता है | वहीं बर्फीले इलाके में यह ८५ फीसदी है |३०० मीटरऊंचाई बढने पर यह स्तर ४ फीसदी तक बड़ जाता है |
देखा दोस्तों हम तो यही कहेंगे कि सुन्दरता को जी भर के निहारिये पर जरा एतिहात से ....|
Sunday, January 8, 2012
सा...... करेक्टर ढीला हैं ....
===================== ============ नमस्कार मित्रो ,हमारी राजनीती और राजनेताओं का चरित्र दिनों -दिन कितना अधोगामी होता जा रहा हैं
यह एक सोचनीय बिषय बनता जा रहा हैं | ये सब कुछ आज से नही वर्षों पहले से होता आया हैं|पहले इक्का
दुक्का पर अब तो कुछ वर्षों से लगातार इनके चरित्र चित्रण हर अख़बार के मुख्य पृष्ट की शोभा बड़ा रहे हैं |
आंध्र प्रदेश के महान राजनीतिज्ञ पुरोधा एन. टी. रामा राव और शिक्षिका लक्ष्मी पार्वतीके किस्से
पूर्व राज्य मंत्री चिन्मयानंद और चिदर्पिता के किस्से ,ये उस समय केहैं जब मिडिया इतना मुखर नहीं था |
और राजनीती भी मिडिया पर हाबी थी ,पाबंदी थी| अगर किसी अख़बार में छपी तो एक छोटे से कालम में
|आम जनता को पता ही नहीं चलता था और उस समय अख़बार भी हर जगह नही पहुच पते थे | जब से
मिडिया बलवती हुआ है इन के चरित्र की पोल खुल कर जनता के सामने आने लगी हैं |
पूर्व राज्य पाल एन. डी. तिवारी कांड ,मधुमती कांड, ये भी नेताओं से जुढ़े हैं |और हल ही मैं उभर के आया
भवरी देवी कांड जिस मैं भी एक नेताजी का चरित्र उभर कर आया हैं |ये सभी हम लोगों के दुवारा ही चुन
कर ही भेजे गये है |
क्याइन केसों की निष्पक्ष जाँच हो पायेगी ?क्या इनको भी आम जनकी तरह सजा
मिलपाएगी |या सजा के नाम पर इनको मिलेगी पञ्च सितारा जेल जहाँ इन के एशों आराम की
सभी सुबिधायें उपलब्ध करा दी जाती हैं | इन्होने तो आपनी उम्र का भी लिहाज नहीं किया |
दोस्तों ये काम अगर आम युवा करता तो लोग शायद यही कहते ... सा ... करेक्टर ढीला
हैं |
===================== ============ नमस्कार मित्रो ,हमारी राजनीती और राजनेताओं का चरित्र दिनों -दिन कितना अधोगामी होता जा रहा हैं
यह एक सोचनीय बिषय बनता जा रहा हैं | ये सब कुछ आज से नही वर्षों पहले से होता आया हैं|पहले इक्का
दुक्का पर अब तो कुछ वर्षों से लगातार इनके चरित्र चित्रण हर अख़बार के मुख्य पृष्ट की शोभा बड़ा रहे हैं |
आंध्र प्रदेश के महान राजनीतिज्ञ पुरोधा एन. टी. रामा राव और शिक्षिका लक्ष्मी पार्वतीके किस्से
पूर्व राज्य मंत्री चिन्मयानंद और चिदर्पिता के किस्से ,ये उस समय केहैं जब मिडिया इतना मुखर नहीं था |
और राजनीती भी मिडिया पर हाबी थी ,पाबंदी थी| अगर किसी अख़बार में छपी तो एक छोटे से कालम में
|आम जनता को पता ही नहीं चलता था और उस समय अख़बार भी हर जगह नही पहुच पते थे | जब से
मिडिया बलवती हुआ है इन के चरित्र की पोल खुल कर जनता के सामने आने लगी हैं |
पूर्व राज्य पाल एन. डी. तिवारी कांड ,मधुमती कांड, ये भी नेताओं से जुढ़े हैं |और हल ही मैं उभर के आया
भवरी देवी कांड जिस मैं भी एक नेताजी का चरित्र उभर कर आया हैं |ये सभी हम लोगों के दुवारा ही चुन
कर ही भेजे गये है |
क्याइन केसों की निष्पक्ष जाँच हो पायेगी ?क्या इनको भी आम जनकी तरह सजा
मिलपाएगी |या सजा के नाम पर इनको मिलेगी पञ्च सितारा जेल जहाँ इन के एशों आराम की
सभी सुबिधायें उपलब्ध करा दी जाती हैं | इन्होने तो आपनी उम्र का भी लिहाज नहीं किया |
दोस्तों ये काम अगर आम युवा करता तो लोग शायद यही कहते ... सा ... करेक्टर ढीला
हैं |
Sunday, January 1, 2012
"मात्रभाषा "
================ दोस्तों नमस्कार ,नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .मित्रो हम सभी लोग अपनी -अपनी स्थाननिय भाषा का प्रयोग ही अपनी दैनिक दिन चर्या में करते हैं |और ये होना भी चाहिए ,जो प्रेम ,अपनत्व ,जो भावना हम अपनी मात्र भाषा में व्यक्त कर सकतें है किसी अन्य भाषा में पूर्ण रूप से नहीं कर सकते ,अगर किसी अन्य भाषा में कर भी दी तो उस में पूर्णता नहीं होती ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्य भाषा के शब्द आप को नहीं दे सकते ,जो आप व्यक्त करना चाहते है | इसी लिए कहते है कि मात्र भाषा भावना प्रधान होती है |
मित्रों हमारा हसना ,रोना ,गाना सब कुछ हमारी मात्र भाषा में ही होता है और हमारे प्रियजन भी इसी भाषा को अच्छी तरह समझते है |
अब मैं आप से पूछना चाहता हूँ ,कि क्या नवजात शिशु कि भी कोई भाषा होती है ? यह सबाल कुछ हैरान करने बाला हो सकता है लेकिन एक नए अध्ययन में पाया गया कि बच्चे गर्भावस्था में ही अपनी मात्र भाषा को समझने लगते है | अरे आपने अभिमन्यु का नाम तो सुन ही रखा होगा ,ये तो महाभारत काल में ही सिद्ध होगया था |जर्मनी के वर्जबर्ग विश्वविध्यालय के शोधकर्ता के एक दल ने ६० नवजात बच्चों के रोने का विश्लेषण किया |मुख्य शोधकर्ता कैथलीन वर्मके ने बताया कि नवजात न केवल अलग अलग तरह से रोते है बल्कि उस तरह की आवाज भी निकालते हैं जो गर्भ में रहते हुए अंतिम तीन महीनों के दौरान उनके कानों तक पहुचती हैं | कैथलीन ने बताया कि गर्भकाल के अंतिम समय में बच्चे अपनी मां की आवाजें सुनते है और अपने रोने में भी इसी तरीके की नकल करते है | दल ने विश्लेषण के दौरान तीन से पांच साल की आयु के ६० नवजातों के रोने की आवाज सुनी |इन में से ३० फ्रेंच भाषी परिवारों से थे और ३० जर्मन भाषी परिवारों से थे |उन्होंने इन शिशुओं की मात्रभाषा के आधार पर उनके रोने के तरीकोंमें अंतर को स्पष्ट किया |जहाँ फ्रांसीसी नवजात को ऊँची लय के साथ रोते सुना गया ,वहीं जर्मन शिशु नीची लय में रो रहे थे | वर्मके ने बताया कि यह पैटर्न दोनों भाषाओँ के बीच लक्षणात्मक अंतर जैसा ही हैं |
देखा मित्रों अपनी मात्रभाषा तो हम मां के पेट से ही सीख कर आते है ,फिर भी उसे अपनाने में लज्जा महसूस करते है ..... ...... क्यूँ ..... ?
================ दोस्तों नमस्कार ,नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .मित्रो हम सभी लोग अपनी -अपनी स्थाननिय भाषा का प्रयोग ही अपनी दैनिक दिन चर्या में करते हैं |और ये होना भी चाहिए ,जो प्रेम ,अपनत्व ,जो भावना हम अपनी मात्र भाषा में व्यक्त कर सकतें है किसी अन्य भाषा में पूर्ण रूप से नहीं कर सकते ,अगर किसी अन्य भाषा में कर भी दी तो उस में पूर्णता नहीं होती ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्य भाषा के शब्द आप को नहीं दे सकते ,जो आप व्यक्त करना चाहते है | इसी लिए कहते है कि मात्र भाषा भावना प्रधान होती है |
मित्रों हमारा हसना ,रोना ,गाना सब कुछ हमारी मात्र भाषा में ही होता है और हमारे प्रियजन भी इसी भाषा को अच्छी तरह समझते है |
अब मैं आप से पूछना चाहता हूँ ,कि क्या नवजात शिशु कि भी कोई भाषा होती है ? यह सबाल कुछ हैरान करने बाला हो सकता है लेकिन एक नए अध्ययन में पाया गया कि बच्चे गर्भावस्था में ही अपनी मात्र भाषा को समझने लगते है | अरे आपने अभिमन्यु का नाम तो सुन ही रखा होगा ,ये तो महाभारत काल में ही सिद्ध होगया था |जर्मनी के वर्जबर्ग विश्वविध्यालय के शोधकर्ता के एक दल ने ६० नवजात बच्चों के रोने का विश्लेषण किया |मुख्य शोधकर्ता कैथलीन वर्मके ने बताया कि नवजात न केवल अलग अलग तरह से रोते है बल्कि उस तरह की आवाज भी निकालते हैं जो गर्भ में रहते हुए अंतिम तीन महीनों के दौरान उनके कानों तक पहुचती हैं | कैथलीन ने बताया कि गर्भकाल के अंतिम समय में बच्चे अपनी मां की आवाजें सुनते है और अपने रोने में भी इसी तरीके की नकल करते है | दल ने विश्लेषण के दौरान तीन से पांच साल की आयु के ६० नवजातों के रोने की आवाज सुनी |इन में से ३० फ्रेंच भाषी परिवारों से थे और ३० जर्मन भाषी परिवारों से थे |उन्होंने इन शिशुओं की मात्रभाषा के आधार पर उनके रोने के तरीकोंमें अंतर को स्पष्ट किया |जहाँ फ्रांसीसी नवजात को ऊँची लय के साथ रोते सुना गया ,वहीं जर्मन शिशु नीची लय में रो रहे थे | वर्मके ने बताया कि यह पैटर्न दोनों भाषाओँ के बीच लक्षणात्मक अंतर जैसा ही हैं |
देखा मित्रों अपनी मात्रभाषा तो हम मां के पेट से ही सीख कर आते है ,फिर भी उसे अपनाने में लज्जा महसूस करते है ..... ...... क्यूँ ..... ?
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