Sunday, May 29, 2011

बेटे या बेटियां :-
==========     लड़कियों ने फिर बाजी मारी |जो अक्सर इन दिनों सुना जाता है , बारहवी के रिजल्ट आ गए, उससे पहले दसवीं की आए और हर अखवार की यही हेड लाइनथी कि लडकियों ने फिर बाजी मार ली | तमाम बन्धनों के बावजूद लडकियाँ कैसे मारजाती हैं बाजी |
       इस बात को नकारा नही जा सकता हैं कि बेटियों (लडकियों ) मेंजहाँ मन को बांधे  रखने कि  क्षमता  होती है वहीं दूसरी ओर वे पढ़ाकू भी होती हैं | उन्हें बेटों कि तरह न तो बाहर जाने की छूट होती हैं न ही देर तक घर से बाहर रहने की इजाजत मिलती है | माता - पिता का कंट्रोल बेटों की अपेक्षा बेटियों पर  ज्यादा  होता है |माता -पिता चाहे कितने शिक्षित या उच्च पद पर क्यों न हो ,बेटी को घर का काम सिखाने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहयते | इस लिए बहुत सारी चीजों को एक साथ करने की आदत उसे मेहनती बना देती हैं |
          बेटियों के साथ तो यह भेद भाव तो सदियों से चला आरहा है | बेटियां चाहे अपने परिवार का कितना ही नाम रोशन करलें कैसी ही परिस्तिथियों में ,पर पूजा जाता है तो बस इन कुल दीपकों को | इस विषय पर आज एक कविता मुझे बार - बार याद आ रही है जिसे मैं आप के लिए लाया हूँ
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         बोये जाते हैं बेटे , और उग आती हैं बेटियां |
                            खाद पानी बेटों में , और लहलहाती हैं बेटियां |
         एवरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
                                                और चढ़ जाती  हैं बेटियां ||
             
         रुलाते हैं बेटे और रोती हैं बेटियां |
         कई तरह गिरते हैं और गिराते हैं बेटे ,
         और सम्भाल लेती हैं ,बेटियां ||
                   
          सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे ,
          जीवन का यथार्थ होती हैं बेटियां ||
          जीवन तो बेटों का हैं ,
          और मारी जाती हैं बेटियां ||

     दोस्तों सोचो ,समझो , ....... ये कविता आप को कैसी लगी ..... क्या ये सच नही ?  
      आपके सुविचारों की प्रतीक्षा मै...........     ...... आप का ये दोस्त |        

Sunday, May 15, 2011

MOUT KI GHATI

मौत की घाटी :-
----------------------------------------  आप भी ये सोच रहे होगे की में किस विषय के बारे मैं ये जानकारी साझा करना चाहयता हूँ |दोस्तों ये सच है , दुनिया में एक जगह एसी भी है  जहाँ  रेगिस्तान में पत्थर इस तरह घूमते है मनो सजीव हो | इन पत्थरों  में कई तो  ११५ किलो ग्राम  तक भारीहैं | बिना किसी मदद के  ये पत्थर आश्चर्यजनक  रूप से इस घाटी की सतह पर  एकदम  सीधी पंक्ति में चलते हैं | 
          ये घाटी जिसे लोग "डेथ वैली " के नाम से भी जानते हैं , अमेरिका  का सबसे निचला बिंदु हैं | यह समुन्द्र तल  से २८२ फिट निचे हैं | यह घाटी लगभग समतल है और अबतक दर्ज सबसे अधिक तापमान ,५८ डिग्री सेल्सियस वाली दूसरी जगह है | 
  वैज्ञानिकों का माननाहै कि इन पत्थरों कि इस अद्भुत गतिविधि का कारण मौसम कि खास  स्तिथि हो सकती है |इस बारे मे किए गए शोध बताते है कि रेगिस्तान में ९० मील प्रति घंटे की   गति से चलने वाली हवाएं ,रात को जमने वाली बर्फ तथा सतह के उपर गीली मिटटी की पतली  परत ,ये सब मिलकर पत्थरों को गतिमान करते होंगें |
          कुछ पर्यावरण विदों का मानना है कि जैसे-जैसे ताप मान में व्रद्धी होगी ,वैसे-वैसे पत्थरों का   खिसकना बंद हो जाएगा | इस बारे में एक सिद्धांत यह बताया जाता हैं कि रेत की सतह के निचे   उठते पानी और सतह के ऊपरबहती तेज हवाओं के मेल के कारण पत्थर खिसकते है |
                   फोटो ग्राफर  माइक बायरन ने पत्थरों की हलचल को फिल्माने में कई साल बिताये हैं | "डेली टेलीग्राफ " को दिए साक्षात्कार में बायरन ने बताया -रेगिस्तान में अपने आप चलने वाले कुछ पत्थर आदमी के वजन जितने भारी हैं | इतने भारी पत्थरों का बिना बाहरी कारण के आगे  सरकना बहुत ही आश्चर्य जनक और अविश्वसनीय है | उनके मुताबिक ये पहेली आज तक अनसुलझी ही है |
               १९८० हैम्पशायर ,मैसाचुसेट्स कालेज के प्रोफेसर ज़ोनरीड ने इन सरकते पत्थरों को लेकर एक अध्ययन किया |उनका निष्कर्ष था कि सम्भवतय रात को जमने वाली बर्फ और हवा मैं अद्भुत मेल से पत्थर सरकते होंगे |लेकिन इसे संतोषजनक उत्तर नही मन जाता |